Wednesday, October 26, 2011

शुभ दीपावली

रोशनी और खुशियों के त्यौहा 
दीपावली की हार्दिक
शुभकामनाएं 

ख़त्म हो जीवन से अँधियारा 
हो जाये जग में उजियारा 
मिटे कष्ट दूर हों विपत्तियाँ 
बढ़ें धन-धान्य और संपत्तियाँ 

न रहे कोई  भूखा या अकेला 
हर गली लगे खुशियों का मेला 
मिले सभी को रोज़ मिठाई 
ख़त्म हो जाये सारी बुराई 

हो जाये जीवन स्वच्छ हमारा 
उजला हो घर और शहर हमारा 
हर द्वार रंगोली और दिये हों 
हर हाथ खुशियों की सौगात लिये हों 

वैमनस्य दुराचार भगा दो 
लूट और भ्रष्टाचार मिटा दो 
करो कुछ ऐसी आतिशबाज़ी भी 
अत्याचार व्यभिचार मिटा दो 

इस दीवाली सभी से मिलें 
हर दिल में प्रेम के फूल हो खिलें  
आओ मनाएँ ऐसी दीवाली 
फिर कोई रात रहे ना काली 
.....रजनीश ( दीपावली ...26.10.2011)

इस ब्लॉग पर मेरी सबसे पहली  पोस्ट  भी दीपावली पर ही थी
 (  यानि  पिछली दीवाली  पर  लिखी हुई ) बस  कुछ  लाइनें थीं   
... शुभकामनाओं की , यहाँ नीचे फिर लिख रहा हूँ : 

" दीपोत्सव  आप सबके जीवन से अंधकार दूर करे  
और  सुख , आनंद और समृद्धि  का प्रकाश   बिखेरे । 
दीवाली  आप सब के लिये मंगलमय हो ।
Wish  you a very happy and prosperous Diwali ..."
    

Friday, October 21, 2011

आ गई ठंड

mysnaps_diwali 155
बुझ गई धरा की प्यास
खुश हुईं सारी नदियां भी
लहलहा उठे हैं सब खेत
देखो तनी  है छाती  पेड़ों की

गुम चुकी है  बदरिया अब
भिगा धरती का हर छोर
फिर दौड़ने लगा  है सूरज
सींचता प्यारी धूप  चहुं ओर

छोटे हो चले अब दिन
अब होंगी लंबी  रातें
निकाल लो अब रजाइयाँ
दुबक कर  करना उसमें बातें

हैं ये दिन त्योहारों के
बन रही है मिठाइयाँ
रोशन दिये से होंगी रातें
चल रही है तैयारियां

कोई डरता अब के बरस भी  
फिर से सिहर कर काँप उठता
हैं  पास न छत न उसके कपड़े
बचने की वो भी कोशिश करता

बर्फ सजाएगी पहाड़ों को अब
गहरी  झीलें भी जम जाएंगी
सुबह मिलेंगीं ओस की बूंदें
साँसे भी अब दिख जाएंगी

वादियाँ ओढ़ती हैं एक लिहाफ
दुनिया कोहरे में छुप जाती है
लो ख़त्म हुई इंतज़ार की घड़ियाँ
इठलाती हुई ठंड आती है ...
.....रजनीश ( 21.10.2011)

Sunday, October 16, 2011

कुछ तकलीफ़ें

DSCN4550
तकती रह गईं खिड़कियाँ धूप का आना ना हुआ
फंस के रह गई परदों में रात का जाना ना हुआ

दुनियादारी के खूब किस्से गली-गली चला करते है
कोशिश भी की पर कहीं ईमां बेच आना ना हुआ

चाहत हमें कहती रही  दो उस सितमगर को जवाब
खुद की नज़रों में दिल से कभी गिर जाना ना हुआ

दिल पे चोट लगती रही  अपना खून भी जलाया हमने
पर नादां नासमझ ही रहे थोड़ा झुक जाना ना हुआ

वक़्त हमें समझाता रहा  दरिया के किनारे खड़े रहे
उलझे हुए टूटे धागों को पानी में छोड़ आना ना हुआ

माना है अपने हाथों में अपनी तक़दीर लिखते हैं  हम
फिर भी कुछ मांगने ख़ुदा के दर ना जाना ना हुआ

....रजनीश ( 16.10.2011)

Wednesday, October 12, 2011

एक आवाज़

1314164570313
एक आवाज
बन जाती है बांसुरी तन्हाई की
एक आवाज़
थिरकती है दिल की धड़कन के साथ
एक आवाज़
चलती है मिला हाथ से हाथ
एक आवाज
घुल जाती है सांसों में
एक आवाज़
मख़मल में लिपटी गुनगुनाती है
एक आवाज़
एक लम्हे को खींच लाती है
एक आवाज़
सूखे पत्तों पे गिरती है बनके बर्फ
एक आवाज
गूँजती है वादियों में
टकरा के दिल की दीवारों से
एक आवाज़
मिलती है चादर की सिलवटों पर
एक आवाज़
नाचती है चाँदनी के आँगन में
एक आवाज़
दिल में उतर जाती है
एक  आवाज़
जिसकी धड़कने कभी नहीं थमती ..
बिरली होती हैं ऐसी आवाजें .....
....रजनीश (12.10.2011)
( जगजीत सिंह जी को श्रद्धांजलि)

Sunday, October 9, 2011

एक अमर एहसास

1313717101017
दुनिया के शोर-गुल में
गुम जाती है अपनी आवाज़
भीड़ में खो जाता है चेहरा
गली-कूचों में अरमान बिखरते जाते हैं
वक्त की जंजीरों  में उलझते है पाँव
एक-दूजे को धकेलते बढ़ते चले जाते हैं
और हर एक बस रास्ता पूछता है ...
प्यारा था एक बाग
जिसे ख्वाब समझ दूर हो चले
एक फटी हुई चादर थी
जिसे नियति समझ के ओढ़ लिया
कुछ  पल जो मर गए
तो सँजो लिया उन्हें यादों में,
कुछ पलों को मारा
उन्हें सँवारने की ख़्वाहिश में ,
जो पल आने वाले थे
वो बस इंतज़ार में ही निकलते रहे,
भागते हाथों से फिसलते  रहे पल 
ज़िंदगी एक अंधी दौड़ बन के रह गई है ...
एहसास ही नहीं रहा कि
बिना जिए ही मरे हुए
भाग रहे हैं जिसकी तरफ
उस लम्हे का नाम है मौत ...
और जब पलों के चेहरे पर
दिखने लगती है लिखी ये इबारत
तब भूल जाते हैं बच-खुचा जीना भी
जबकि ये एक अकेला एहसास
अगर हो जाए सफ़र  की शुरुआत में,
तो दिल की आवाज़ पहुंचे  कानों तक
दिख जाए पावों को रास्ता
सफ़र बने बेहद खूबसूरत
और प्यार से रोशन हो जाए
खुल जाएँ सारी गाठें 
हर पल सुनहरा हो जाए
भीड़ से अलग दिखे चेहरा
जो दूजों को भी राह दिखाए ....
.....रजनीश ( 09.10.11)
(...स्टीव जॉब्स को समर्पित )

Tuesday, October 4, 2011

महात्मा

1313717229673
एक चश्मा
एक लाठी
एक धोती
एक घड़ी
एक जोड़ी चप्पल
एक दुबली पतली काया
एक विशाल व्यक्तित्व
एक सिद्धान्त
एक विचार
एक विशिष्ट जीवन
एक दृष्टा
एक पथ प्रदर्शक
एक रोशनी
एक क्रांतिकारी
एक महामानव
एक महात्मा
...
आज फिर है सपनों में
उसे लौटना होगा
फिर बनाना होगा थोड़ा नमक
कुछ सूत कातना रह गया है बाकी
एक और यात्रा शेष
सत्य के साथ एक और प्रयोग
उस जैसा कोई नहीं
जो पीर पराई जाने
...रजनीश ( 2 अक्तूबर गांधी जयंती पर )

Saturday, October 1, 2011

झुर्रियों का घर

DSC00418
बनाया था जिन्होंने आशियाना
इकठ्ठा  कर एक-एक तिनका
जोड़ कर एक-एक ईंट पसीने से
किया था कमरों को  तब्दील घर में,
उसकी दहलीज़ पर बैठे वो
आज बस ताकते है आसमान में
और झुर्रियों भरी दीवारों पर लगी
अब तक ताजी पुरानी तस्वीरों से
करते हैं सवाल-जवाब बाते करते हैं ,
धमनियाँ फड़क जाती  हैं अब भी
कभी तेज रहे खून के बहाव की याद में 
धुंधली हो चली आँखों के आँगन में
आशा की रोशनी  चमकती  अब भी
कि ऐसा ही नहीं रहेगा सूना ये घरौंदा
और अपने खून से पाले हुए सपने
कुछ पल वापस आकर सुनाएँगे लोरियाँ,
आशा की रोशनी चमकती अब भी
कि सारे काँटों को बीन कर
अपने अरमानों और दीवानगी से
जो सड़क बनाई जिस अगली पीढ़ी के लिए
उनमें मे से कोई तो आएगा
हाथ पकड़ पार कराने वही सड़क ,
हर नई झुर्री से वापस झाँकता
वही पुराना समय पुराना मंजर
जब वो होते थे माँ की गोद में
और बुढ़ाती आँखों में अजब कुतूहल
जानी-पहचानी चीजों को फिर जानने  का
और सदा जवान खत्म ना होता जज़्बा
काँपते लड़खड़ाते लम्हों को पूरा-पूरा  जीने का ...
...रजनीश (01.10.11)
( 1 अक्तूबर , अंतर्राष्ट्रीय वृद्ध दिवस पर )
पुनः पधारकर अनुगृहीत करें .....