Tuesday, January 31, 2012

एक उपेक्षित


कई बार सोचा 
कुछ पल बतिया लें 
अपनी कलम से 
और दिल की दीवारों 
पर कहानियाँ बुनती तस्वीरों को 
इन पन्नों पर उतार लाएँ 

पर झोली में 
वक्त का कोई टुकड़ा नहीं मिला 
जो इन तस्वीरों के नाम कर दें 
भागती हुई इस ज़िंदगी में 
कोई ऐसा मुकाम भी नहीं 
जहां ठहर अपने दिल को थाम लें 
 उसकी धक-धक सुनें
दिल को गले लगाएँ 

भागते रहते हैं हर दम 
साँस फूलने पर ही रुकते हैं 
 खुद से भागते भागते
 फूलती साँसों में 
उन तस्वीरों को साफ कर लेते हैं 
कभी काँच बदला कभी डोर सीधी की 
कभी तस्वीर की तारीख़ फिर से लिखी 
कभी बस एक नज़र भर देख लिया 

इतना वक्त नहीं कि 
तस्वीरों को  गोद में लेकर बैठें
उनसे  कुछ बातें  करें
जब-जब जोड़ते हैं कुछ पल 
चुरा कर यहाँ-वहाँ से 
हमें दुनियादारी उठा ले जाती है 
और  कलम की स्याही
एक कैद में बंद 
बस सूखती चली जाती है....
रजनीश (31.01.2012)

Sunday, January 22, 2012

बचपन की बात


बचपन के दिन थे 
कुछ ऐसे पल छिन थे 
ऊपर खुला आसमां था 
पूरा शहर अपना मकां था 

हर बगिया के बेर 
होते अपने थे 
खेलते कंचे और  
बुनते सपने थे 

ना दुनियादारी की झंझट 
ना कोई नौकरी का रोना 
बस काम था पढ़ना 
खेलना-कूदना और सोना  

पर तब क्या सब मिल जाता था 
क्या जैसा चाहा  हो जाता था 
क्या दिल तब नहीं दुखता था 
क्या कांटा तब कोई नहीं चुभता था 

दिल चाहता था उड़ना बाज की तरह 
खो जाना वादियों में गूँजती आवाज़ की तरह 
हर खिलौना  मेरी झोली में नहीं था 
मेरा बिछौना भी मखमली नहीं था 

बचपन में ही जाना पराया और अपना 
कि सच नहीं होता है हर एक सपना 
सीखी बचपन में ही चतुराई और लड़ाई 
अच्छे और बुरे की  समझ भी बचपन में आई 

अफसोस तब भी 
दर्द तब भी होता था 
कुंठा तब भी 
प्यार तब भी होता था 

कुछ बातें ऐसी थी 
लगता बचपन कब बीतेगा 
जैसे नियंत्रण में रहना 
और पढ़ना कब छूटेगा 

बस उम्र ही कम थी 
और सब कुछ वही था 
थोड़ी सोच कम थी 
इसलिए सब लगता सही था 

उत्सुकता ज्यादा 
और शंका कम थी 
सौहार्द्र ज्यादा और
 वैमनस्यता कम थी 

पर थे सब एहसास 
हर भावना मौजूद थी 
लगते थे संतोषी 
पर हर कामना मौजूद थी 

बचपन है आखिर जीवन का हिस्सा 
दिन वही और रात वही है 
बस कुछ रंग हैं अलग 
तस्वीर वही और बात वही है 

कोई बचपन महलों में रहता 
कोई फुटपाथ पे सो जाता है 
किसी को सब मिल जाता है 
कोई बचपन खो जाता है 

हर बचपन एक जैसा नहीं होता 
जैसे नहीं हर एक जवानी 
अलग अलग चेहरे हैं सबके 
सबकी अलग कहानी 
...रजनीश (22.01.2011)

Monday, January 16, 2012

नज़रें प्यार भरी


तुम्हें देख सकता  हूँ 
तुम्हें सुन सकता हूँ 
महसूस कर सकता हूँ तुम्हें 
तुम्हें छू सकता हूँ 
तुम्हें बसा सकता हूँ दिल में 

पर समझ नहीं सकता तुम्हें 
तुम्हें जान नहीं सकता पूरा 

क्यूंकि कभी हृदय आड़े आता है 
या फिर कभी ये मस्तिष्क 
कुछ  सीमाएं हैं मेरी भी समझ की 
कुछ तुम हो अव्यक्त 
कुछ हिस्सा तुम्हारा अदृश्य 
तुम्हारे कुछ कंपनों का 
आभास ही नहीं होता

पर क्या ये जरूरी है 
कि हो कुछ उस जीती जागती 
तस्वीर के अलावा भी
जो मैं देखता हूँ , छूता  हूँ , महसूस करता हूँ 

क्या होता गर सब कुछ पता होता 
मैं सब कुछ जान लेता 
खुद को भी और तुम्हें भी 
पूरा का पूरा पहचान लेता 

तुम्हारे प्यार के एहसास के लिए 
दिल पर विश्वास करता हूँ 
तुम्हारी आँखों में 
प्रेम का छलकता सागर देखता हूँ 
और सब कुछ प्रेम मय पाता हूँ 

गर सब कुछ जान जाता तो 
पता नहीं प्यार की क्या परिभाषा होती 
गहराई में उतरना  और मोती ढूँढना 
शायद दूर ले जाए खुद से भी 
क्यूंकि खोज तो अनंत होती है 
अहसासों से परे ...
सच की परतें उधेड़ते
भ्रम और प्रश्नों की 
कई और दीवारें
 खड़ी होती चली जाती हैं 

और यात्रा तारों से भी 
दूर की हो जाती है ...

चलो फूल को फूल ही रहने दें 
उसकी पंखुड़ियाँ तोड़ 
सुंदरता ना तलाशें 
आओ स्वीकारें एक दूसरे को 
बिलकुल वैसा और जितना 
 हम समझते हैं 

मैं नहीं देख सकता पूरा-पूरा 
मैं झांक भविष्य के घर में 
पहचान नहीं सकता कल की तस्वीर 
शायद इसीलिए कि 
एहसास जिंदा रहें 
और ज़िंदगी में हो 
रोमांच और दिलचस्पी 

इसीलिए छोड़ दो विश्लेषण 
प्यार के मोती पिरो लो 
विश्वास के धागे में 
देखो प्यार भरी नजरों से
हर तरफ फैला हुआ प्यार 
और हर पल में बसे 
आनंद को जी लो 
जी भर के ....
....रजनीश ( 16.01.2012)

Friday, January 13, 2012

एक बूंद


ओस की इक बूंद 
जमकर घास पर, 
सुबह -सुबह 
मोती हो गई,  

ठंड की चादर ने 
दिया था उसे ठहराव 
कुछ पलों का, 
 फिर वो बूंद
सूरज की किरणों 
पर बैठ उड़ गई, 

छोड़कर घास की हथेली पर
एक मीठा अहसास
कह अलविदा 
 हवा में खो गई,

कुछ पलों का जीवन 
और दिल पर ताजगी भरी 
नमकीन अमिट छाप 
 एक बूंद छोड़ गई ...

घास पर उंगली फिरा 
महसूस करता हूँ 
उस बूंद का वजूद
जो भाप हो गई ...
...............................

एक बूंद में होता है सागर 
बूंदों से  दरिया बनता है 
बूंदों से बनती है बरखा
बूंद - बूंद शहद बनता है 
  
भरा होता है एक बूंद में  
दर्द जमाने भर का 
इकट्ठी होती  है खुशी बूंद-बूंद 
बूंद बूंद शराब बनती है 

प्यार की इक बूंद का नशा उतरता नहीं
इक बूंद सर से पैर भिगो देती है 
कहानी ख़त्म कर देती  है एक बूंद
एक बूंद ज़िंदगी बना देती है 
...
बूंद-बूंद चखो जाम ज़िंदगी का 
बूंद-बूंद जियो ज़िंदगी ....
...रजनीश (12.01.2012)

Sunday, January 8, 2012

शुरू हुआ एक साल


शुरू हुआ एक साल नया 
बीती हैं कुछ ही रातें  
सड़कें घर सब भीगे भीगे 
रह रह होती बरसातें 

है मौसम भूला  राह 
दबा उत्साह क्या होगा आगे 
 अन्ना दिशा गए भूल 
छुपाए शूल इक रस्ता मांगे 

शुरू हुआ एक साल नया 
लाया चुनावी हलचल 
नेता भटकेंगे गली गली 
करेंगे सबकी मान-मुनव्वल 

होगा सब कुछ वही 
बात है सही काहे का रोना 
पर लगे रहो  मुन्ना भाई 
 नहीं है बुराई , अब न सोना 

शुरू हुआ एक साल नया 
 अंदर-बाहर का खेल 
कोई फंसा भंवरी के भंवर में 
बड़े नित जाते जेल 

सोच अपनी  है यही 
बात है सही उदास न रहना 
बन जाएगी तक़दीर 
है गर तदबीर प्रेम तुम सबसे करना ...
...रजनीश (08.01.2012)
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