रस्ते में मिलते पत्थरों को गिना करता हूँ
बढ़ती दूरियों के एहसास की हर सांस गिना करता हूँ ...
रस्ते की धूल का एहसान ये, मुझ पर यारों
गुजरते कदमों के निशान लिए रहती है
निशानों के इस समंदर में खड़ा
कदमों की हर छाप गिना करता हूँ
रस्ते को छांव देते दरख्त यादों के
हर मौसम , हर साल बढ़ा करते हैं
पत्ते पत्ते पर लिखी कहानियाँ यादों की
पीले पड़ते उन पत्तों को गिना करता हूँ
Nice composition :-)
ReplyDeletebahut badhiya
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