Wednesday, January 19, 2011

रात से बात

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जब चाँद- तारे 
रज़ाई ओढ़े, सो गए थे ,
हवा भी थकी ,
आंखे मूँदे ,लेटी थी पत्तों पर ,
सारे पंछी ,
चुग्गा-दाना भूले ,
अँधियारे में गुम गए थे...
और  जलते दिये का तेल,
लड़ते हुए अंधेरे से, खप गया था ,
सूखती बाती, हाँफते दिये की छाती
पर अब कालिख छोड़ रही थी,
तब,  कल 'रात' आई थी
मेरे कमरे में ,
पर मैं उसे नहीं मिला वहाँ ,
फिर  जब हवा ने अंगड़ाई ली
और  आँगन साफ किया-
सुनहली किरणों के लिए,
जाते जाते 'रात' ने पूछा था मुझसे,
कहाँ चले गए थे तुम ?
मैंने कहा तेल ढूंढ रहा था मैं,
बगल के कमरे मेँ,
'दिये' के लिए गया था वहाँ ,
एक सपना है.  दरअसल कुछ पुराना,
वो भी  तो है मेरे संग,
भटकते यूं ही आ गया था कभी ,
और तब से मेरे साथ ही रहता है,
भूल गया हूँ उसकी उम्र,
उसके चेहरे से भी पता नहीं कर पाता ,
सामने वाले पेड़ पर
हर साल पत्ते बदलते हैं,
पर इसका चेहरा बिलकुल नहीं बदला,
वो नहीं दिखा तुम्हें ? ,
वहीं बिस्तर पर तो था !
चादर मेँ छुपा था,
वही जगाए रहता है मुझे ,
दोनों ही जागते हैं,
सपना मेरे लिए और मैं सपने की खातिर,
तुम औरों की फिक्र करो...
उन्हें सुलाओ ...
थक गई होगी, जाओ अब आराम करो,
सपना भी वहीं साथ खड़ा था
मेरे कंधे पर हाथ डाले ,
फिर हम दोनों ने मिलकर 'रात' को विदा किया .....
......रजनीश (19.01.11)

8 comments:

  1. बहुत खूब .. गज़ब की कल्पना शक्ति है ... आप और ख्वाब ने मिल कर लाजवाब रचना बुनी है ...

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  2. गज़ब कर दिया ………………कल्पना का इतना सुन्दर चित्रण …………………बहुत ही लाजवाब रचना है ……………बहुत ही सुन्दर अहसास उतारा है।

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  3. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (20/1/2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
    http://charchamanch.uchcharan.com

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  4. kya kahu. kuch kahna is rachna ke saath nainsafi hogi. bemisal.

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  5. 'dono hi jagte hain
    sapna mere liye
    aur nain sapne ki khatir'
    wah kya kahna !

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  6. लाजवाब रचना है ……………बहुत ही सुन्दर...............

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टिप्पणी के लिए धन्यवाद ... हार्दिक शुभकामनाएँ ...