Monday, February 14, 2011

प्रेम

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तुम कहो  जो ,चाँद-तारे
इस धरा पर तोड़ लाऊं ,
है असंभव ये , कहो तो,
सर्वस्व अपना मैं लुटाऊँ ...

अनुभूत कर सकते तभी,
जब पथ पर चलने तुम लगो ,
हृदय ये मेरा ,  पथ है वो,
आओ, चलो , खुद से मिलो ...

प्रेम होता स्व को खोकर ,
दूसरा बन जाओ तभी ,
मैं नहीं हूँ , तुम हूँ मैं;
क्षण भर को तो, देखो कभी...

खुद को खो दो, प्रेम पा लो,
प्रत्येक कण में प्रेम है ,
अप्रेम जैसा कुछ नहीं ,
शाश्वत, जगत में प्रेम है ...

हृदय होते नहीं है पूरक,
वे स्वयं सम्पूर्ण हैं,
जब पूर्ण  मिलता पूर्ण में ,
तब प्रेम होता पूर्ण है...

.........रजनीश (14.02.2011)

6 comments:

  1. प्रेम की बेहतरीन प्रस्‍तुति। आपको प्रेम दिवस की शुभकामनाएं और इस बेहतरीन प्रस्‍तुति के लिए आभार।

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  2. आज के दिन आपको मेरी प्यार भरी शुभकामनायें

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  3. 'jab poorn milta poorn me
    tab prem hota poorn hai'
    laukik se alaukik prem tak pahunchati hai rachna.

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  4. हृदय होते नहीं है पूरक,
    वे स्वयं सम्पूर्ण हैं,
    जब पूर्ण मिलता पूर्ण में ,
    तब प्रेम होता पूर्ण है...

    बस यही सत्य है…………सुन्दर अभिव्यक्ति।

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  5. सत्य वचन है सर।

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टिप्पणी के लिए धन्यवाद ... हार्दिक शुभकामनाएँ ...