Thursday, March 10, 2011

आखिर क्यूँ ?

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आसान सी  है  जिंदगी इसे दुश्वार क्यूँ बनाते हो,
हँसते-खेलते हुए दिलों को  बीमार क्यूँ बनाते हो ।

मिल रही हैं तुम्हें पेट भरने को रोटियाँ,
अपने कारखानों में  तुम  तलवार क्यूँ बनाते हो ।

ज़िंदगी तुम्हारी है   प्यार  का हसीं सौदा,
इसे चंद कौड़ियों का  व्यापार क्यूँ बनाते हो ।

छोटी सी छांव में ही  कटनी है ज़िंदगी,
इंसानी लाशों पे खड़ी ये  मीनार क्यूँ बनाते हो ।

चाहते हो हर कदम बांट ले थोड़ा दर्द कोई,
हर तरफ बँटवारे की  दीवार क्यूँ बनाते हो ।
....रजनीश (10.03.2011)

6 comments:

  1. चाहते हो हर कदम बांट ले थोड़ा दर्द कोई,
    हर तरफ बँटवारे की दीवार क्यूँ बनाते हो ।

    बहुत बढ़िया सर!

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  2. मिल रही हैं तुम्हें पेट भरने को रोटियाँ,
    अपने कारखानों में तुम तलवार क्यूँ बनाते हो ।
    ज़िंदगी तुम्हारी है प्यार का हसीं सौदा,
    इसे चंद कौड़ियों का व्यापार क्यूँ बनाते हो ।

    छोटी सी छांव में ही कटनी है ज़िंदगी,
    इंसानी लाशों पे खड़ी ये मीनार क्यूँ बनाते हो ।

    वाह शानदार ………लाजवाब ……………सभी शेर बेहतरीन्।

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  3. मिल रही हैं तुम्हें पेट भरने को रोटियाँ,
    अपने कारखानों में तुम तलवार क्यूँ बनाते हो।.....

    क्या शेर कहे हैं आपने,
    बहुत खूब !...... हरेक शेर लाज़वाब..

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  4. "चाहते हो हर कदम बांट ले थोड़ा दर्द कोई,
    हर तरफ बँटवारे की दीवार क्यूँ बनाते हो "

    बहुत संवेदनशील हैं आप ...शुभकामनायें आपके लिए !!

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टिप्पणी के लिए धन्यवाद ... हार्दिक शुभकामनाएँ ...