Sunday, April 10, 2011

मिलावट

271209 022
मत खाना कुट्टू का आटा
इसमें भ्रष्टाचार मिला है,
दूध में नहीं दूध,
हैवानियत का क्षार मिला है..

पानी में है पानी
पर इसकी अलग कहानी,
कैसे पी लें इसमें भी तो
बीमारी का बुखार मिला है..

हरी सब्जी में हरा कुछ नहीं,
स्वाद फलों का कृत्रिम है,
सब कुछ नकली झूठा लगता
ये कैसा संसार मिला है ?
...,रजनीश (10.04.11)

11 comments:

  1. बहुत सही बात कही सर!...वैसे आजकल तो वैचारिक मिलावट भी देखी जाने लगी है.कितना बचेंगे इस मिलावट से.

    ReplyDelete
  2. बहुत सटीक कथन...आज मिलावट किस में नहीं है..जब तक इस के विरुद्ध कठोर कदम नहीं उठाये जाते यह मिलावट यों ही चलती रहेगी..सार्थक प्रस्तुति

    ReplyDelete
  3. बहुत सटीक,सार्थक प्रस्तुति| धन्यवाद|

    ReplyDelete
  4. सच की तस्वीर खींच दी आपने...
    वर्तमान का यथार्थ है आपकी कविता में .
    बधाई।

    ReplyDelete
  5. यथार्थ का परिचय देती सामयिक कविता. बहुत बधाई.

    ReplyDelete
  6. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (11-4-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

    http://charchamanch.blogspot.com/

    ReplyDelete
  7. सब कुछ मिलावटी है.
    जियें तो कैसे जियें .

    ReplyDelete
  8. प्रभावित करती हैं यथार्थ परक पंक्तियाँ ..... सच में कुछ नहीं है जिसे बिना मिलावट का माना जाये....

    ReplyDelete
  9. अष्टमी के दिन बिलकुल सही प्रश्न पूछा है माँ से आपने .....
    क्या विकास का ऐसे ही खामियाजा भुगतेंगे हम सब ...?
    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति .

    ReplyDelete

टिप्पणी के लिए धन्यवाद ... हार्दिक शुभकामनाएँ ...