Tuesday, May 17, 2011

आप बीती

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[1]
जो चीजें थीं कभी सस्ती
होती जा रही हैं वो महँगी
जो कभी  होती थीं अनमोल
गली-गली  बिकती हैं  सस्ते में...
[2]
घड़ी तो अब भी है गोल
गति भी नहीं बदली उसकी
फिर  उसी  दायरे में चलते-चलते
समय कैसे कहाँ  कम हो गया ?
[3]
दिन में तेज धूप , धूल भरी आँधी
और शाम को बदस्तूर बारिश
दिन भर एक ही मौसम से ...
जैसे  कायनात ऊब सी गई है
[4]
एक , फिर वापस आने चले गए
और एक फिर से वापस आ गए
खून हमारा जला ,वोट हमने दिया
और हम वहीं के वहीं रह गए ...
[5]
बनाया टीवी और अखबार
ताकि कन्फ़्यूज़ ना हो हम यार
ये पल पल कर  चीत्कार बताएं
हमको ,  नरक है सब संसार ...
...रजनीश (16.05.11)

7 comments:

  1. घड़ी तो अब भी है गोल
    गति भी नहीं बदली उसकी
    फिर उसी दायरे में चलते-चलते
    समय कैसे कहाँ कम हो गया ?... bahut hi badhiyaa

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  2. चौथा पैरा बहुत अच्छा लगा सर!


    सादर

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  3. घड़ी तो अब भी है गोल
    गति भी नहीं बदली उसकी
    फिर उसी दायरे में चलते-चलते
    समय कैसे कहाँ कम हो गया ?

    सच आज किसी के पास वक्त नहीं .... सारी क्षणिकाएं बहुत अच्छी लगीं

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  4. सभी क्षणिकायें बहुत ख़ूबसूरत...दूसरी और तीसरी रचनाएँ लाज़वाब..

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  5. एक , फिर वापस आने चले गए
    और एक फिर से वापस आ गए
    खून हमारा जला ,वोट हमने दिया
    और हम वहीं के वहीं रह गए ...

    wah kya likha he apne ,

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टिप्पणी के लिए धन्यवाद ... हार्दिक शुभकामनाएँ ...