Saturday, May 28, 2011

इक रास्ता दो राही

एक ड्राइवर की ज़िंदगी कुछ लाइनों में बयान करने की कोशिश है यहाँ पर
DSCN3905
मेरी ज़िंदगी के रास्ते में
मिलता है एक ज़ालिम रास्ता
वही रास्ता जो सोता नहीं
है वो उसकी ज़िंदगी का रास्ता

जो मेरे घर का रास्ता है
वो रास्ता उसका घर है
मेरे घर पर एक छत है
उसका तो फैला अंबर है

एक गाड़ी मैं चलाता हूँ
रास्ते को आसान बनाने
एक गाड़ी वो चलाता है
ज़िंदगी की गाड़ी चलाने

हो जाती है जब रात
मेरी गाड़ी रुक जाती है
पर  होती है उसकी रात तभी
गाड़ी जब  उसकी रुक जाती है

मेरे रास्ते पर रिश्तों से
मुलाकात क्षणिक हो पाती है
उसके रास्ते , मुलाकातों में
क्षणिक  रिश्ते बन जाते हैं

एक ही हैं हम दोनों
हैं दो हिस्से एक कहानी के
मैं हूँ एक ज़िंदगी
टूटे पहिये वाली
वो पहियों पे भागती
एक टूटी हुई ज़िंदगी
…रजनीश (22.05.11)

8 comments:

  1. मेरे रास्ते पर रिश्तों से
    मुलाकात क्षणिक हो पाती है
    उसके रास्ते , मुलाकातों में
    क्षणिक रिश्ते बन जाते हैं

    बहुत बढ़िया लिखा है सर!

    सादर

    ReplyDelete
  2. "मैं हूँ एक जिंदगी

    टूटे पहियों वाली

    वो पहियों पे भागती

    एक टूटी जिंदगी "

    ...............जिंदगी के फलसफे को बड़ी सुन्दरता के साथ शब्दांकित किया है

    .................प्रारंभ से अंत तक रचना की बुनावट एवं प्रवाह अद्भुत .....अति सुन्दर

    ReplyDelete
  3. एक ही हैं हम दोनों
    हैं दो हिस्से एक कहानी के
    मैं हूँ एक ज़िंदगी
    टूटे पहिये वाली
    वो पहियों पे भागती
    एक टूटी हुई ज़िंदगी
    waah

    ReplyDelete
  4. एक गाड़ी मैं चलाता हूँ
    रास्ते को आसान बनाने
    एक गाड़ी वो चलाता है
    ज़िंदगी की गाड़ी चलाने


    मर्मस्पर्शी एवं भावपूर्ण काव्यपंक्तियों के लिए कोटिश: बधाई !

    ReplyDelete
  5. मैं हूँ एक ज़िंदगी
    टूटे पहिये वाली
    वो पहियों पे भागती
    एक टूटी हुई ज़िंदगी

    ReplyDelete

टिप्पणी के लिए धन्यवाद ... हार्दिक शुभकामनाएँ ...