Thursday, June 23, 2011

जवाब की तलाश में ...

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तन्हाई की हद का कोई हिसाब क्यूँ नहीं
अपनी किस्मत के सवालों का कोई जवाब क्यूँ नहीं

लगी उम्र   हमसे दिल का चुराना न हुआ
सिखा दे इश्क़ हमें ऐसी कोई किताब क्यूँ नहीं

गिरा दी  दीवार  हमने तोड़ फेंके सारे बंधन
फिर भी   हाथों में उनके एक छोटा गुलाब क्यूँ नहीं

मुझ गरीब से लेते हो एक पाई का लेखाजोखा
उस अमीर की कारस्तानियों का कोई हिसाब क्यूँ नहीं

भरे हैं मयखाने जिगर खराब  सुरूर फीका है
नशा हो ज़िंदगी तुम बनाते इसे शराब क्यूँ नहीं

सुधरो खुद फिर सुधारने चलो औरों को
सभी हों खुश तुम्हारी नज़रों में ऐसा ख़्वाब क्यूँ नहीं

क्या बदलेगी ये दुनिया बदल के क़ानूनों को
बदल जाये इंसान लाते ऐसा इंकलाब क्यूँ नहीं
...रजनीश (23.06.2011)

11 comments:

  1. मुझ गरीब से लेते हो एक पाई का लेखाजोखा उस अमीर की कारस्तानियों का कोई हिसाब क्यूँ नहीं |
    इस प्रश्न का उत्तर नहीं मिला है मुश्किल सवाल ! बहुत खूब

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  2. मुझ गरीब से लेते हो एक पाई का लेखाजोखा
    उस अमीर की कारस्तानियों का कोई हिसाब क्यूँ नहीं

    आपने बहुत संतुलित शब्दों में अपनी बात कही है। शुभकामनायें।

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  3. सुधरो खुद फिर सुधारने चलो औरों को
    सभी हों खुश तुम्हारी नज़रों में ऐसा ख़्वाब क्यूँ नहीं


    खूबसूरत गज़ल

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  4. दिल को छूते हुए शेरो से सजी ग़ज़ल

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  5. सुन्दर प्रश्न उठाती गज़ल्।

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  6. मुझ गरीब से लेते हो एक पाई का लेखाजोखा
    उस अमीर की कारस्तानियों का कोई हिसाब क्यूँ नहीं
    ...himmat hi nahi

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  7. 'क्या बदलेगी ये दुनिया बदल के कानूनों को

    बदल जाए इंसान ऐसा लाते कोई इंक़लाब क्यूँ नहीं '

    ..................दमदार शेर ......बस इसी की जरूरत है

    ....................बढ़िया रचना

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  8. बढ़िया रचना

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  9. क्या बदलेगी ये दुनिया बदल के क़ानूनों को
    बदल जाये इंसान ऐसा लाते कोई इंकलाब क्यूँ नहीं

    जिस दिन इंसान खुद बदल जायेगा उसके जीवन में उसी दिन इन्कलाब आयेगा... बहुत सुंदर गजल !

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  10. indiblogger pe aapki post dekhi |

    yahan aakar use padha, bahut accha laga | bahut sunder|

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टिप्पणी के लिए धन्यवाद ... हार्दिक शुभकामनाएँ ...