कैद हो ना सकेगी बेईमानी चंद सलाखों के पीछे
घर ईमानदारी के बनें तो कुछ बात बन जाए
मिटता नहीं अंधेरा कोठरी में बंद करने से
एक दिया वहीं जले तो कुछ बात बन जाए
ना खत्म होगा फांसी से कत्लेआमों का सिलसिला
इंसानियत के फूल खिलें तो कुछ बात बन जाए
बस तुम कहो और हम सुने है इसमें नहीं इंसाफ
हम भी कहें तुम भी सुनो तो कुछ बात बन जाए
हम चलें तुम ना चलो तो है धोखा रिश्तेदारी में
थोड़ा तुम चलो थोड़ा हम चलें तो कुछ बात बन जाए
.....रजनीश (29.08.2011)
आसानी से कही है मुश्किल बात बनाने की कहानी .....
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना.....
बहुत-बहुत बधाई |
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति ||
बहुत सुन्दर भाव .. एक दिया काफी है अँधेरा मिटाने के लिए
ReplyDeleteआज 29 - 08 - 2011 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
ReplyDelete...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .तेताला पर
iske siwa samadhan kya hai... ek kadam to badhaao
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाववान रचना...
ReplyDeleteबात जरुर बनेगी ....बेहतरीन और सार्थक रचना
ReplyDeleteyahi jiwan ki sacchai hai....
ReplyDeleteथोडा तुम चलो थोडा हम च लेंतो कुछ बात बन जाये, संदेश देती हुई सुंदर कविता !
ReplyDeleteअंधेरे मिटाने को बस एक चिराग जल जाये…………बहुत ही सुन्दर व भावमयी प्रस्तुति।
ReplyDeleteसंवेदनशील कविता.... बहुत सशक्त अभिव्यक्ति...
ReplyDeletesahi kaha, hum bhi kahein tum bhi suno, thoda hum chale thoda tum chalo. agar aisa ho to sach mein koi baat bigde hin nahin, baat ban jaaye. achchhi rachna, shubhkaamnaayen.
ReplyDeleteबहुत ख़ूब!!!
ReplyDeleteबहुत ख़ूबसूरत और सारगर्भित प्रस्तुति..आज की समस्याओं का इसके अलावा कोई और समाधान भी नहीं है..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव ..
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ReplyDelete♥
आदरणीय रजनीश जी
सादर अभिवादन !
कुछ बात बन जाए … आपकी इस रचना में अच्छे भाव प्रस्तुत हुए हैं …
आपसी संबंध , समाज , शासन सबके लिए आपने कुछ न कुछ कहा है …
बहुत ख़ूब !
बीते हुए हर पर्व-त्यौंहार सहित
आने वाले सभी उत्सवों-मंगलदिवसों के लिए
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
हम भी कहें यूं भी सुनो ...
ReplyDeleteक्या बात है ...
यहाँ तो हर कोई अपनी ही सुनना चाहता है ....:))
सच कहा ... इमानदारी घर से ही शुरू होनी चाहिए ...
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