Monday, August 29, 2011

समाधान

2011-08-19 06.56.03
कैद  हो ना सकेगी बेईमानी चंद सलाखों के पीछे
घर ईमानदारी के  बनें तो कुछ बात बन जाए

मिटता नहीं अंधेरा  कोठरी में बंद करने से
एक दिया वहीं जले तो कुछ बात बन जाए

ना   खत्म होगा फांसी से कत्लेआमों का सिलसिला
इंसानियत के फूल खिलें तो कुछ बात बन जाए

बस तुम कहो और हम सुने  है इसमें नहीं  इंसाफ
हम भी कहें तुम भी सुनो तो कुछ बात बन जाए

हम चलें  तुम ना चलो तो  है धोखा  रिश्तेदारी में
थोड़ा तुम चलो थोड़ा हम चलें तो कुछ बात बन जाए
.....रजनीश (29.08.2011)

18 comments:

  1. आसानी से कही है मुश्किल बात बनाने की कहानी .....
    बहुत सुंदर रचना.....

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  2. बहुत-बहुत बधाई |

    सुन्दर प्रस्तुति ||

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  3. बहुत सुन्दर भाव .. एक दिया काफी है अँधेरा मिटाने के लिए

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  4. बहुत सुन्दर भाववान रचना...

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  5. बात जरुर बनेगी ....बेहतरीन और सार्थक रचना

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  6. थोडा तुम चलो थोडा हम च लेंतो कुछ बात बन जाये, संदेश देती हुई सुंदर कविता !

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  7. अंधेरे मिटाने को बस एक चिराग जल जाये…………बहुत ही सुन्दर व भावमयी प्रस्तुति।

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  8. संवेदनशील कविता.... बहुत सशक्त अभिव्यक्ति...

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  9. sahi kaha, hum bhi kahein tum bhi suno, thoda hum chale thoda tum chalo. agar aisa ho to sach mein koi baat bigde hin nahin, baat ban jaaye. achchhi rachna, shubhkaamnaayen.

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  10. बहुत ख़ूबसूरत और सारगर्भित प्रस्तुति..आज की समस्याओं का इसके अलावा कोई और समाधान भी नहीं है..

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  11. बहुत सुन्दर भाव ..

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  12. आदरणीय रजनीश जी
    सादर अभिवादन !

    कुछ बात बन जाए … आपकी इस रचना में अच्छे भाव प्रस्तुत हुए हैं …
    आपसी संबंध , समाज , शासन सबके लिए आपने कुछ न कुछ कहा है …
    बहुत ख़ूब !


    बीते हुए हर पर्व-त्यौंहार सहित
    आने वाले सभी उत्सवों-मंगलदिवसों के लिए
    हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  13. हम भी कहें यूं भी सुनो ...
    क्या बात है ...
    यहाँ तो हर कोई अपनी ही सुनना चाहता है ....:))

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  14. सच कहा ... इमानदारी घर से ही शुरू होनी चाहिए ...

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टिप्पणी के लिए धन्यवाद ... हार्दिक शुभकामनाएँ ...