कई बार की थी
कोशिश कि पढ़ सकूँ
उनकी आँखों में लिखी
एक नज़्म
पर नज़रें हर बार
बस देख सकीं
उन शब्दों की सूरत
और पढ्ना ही ना हुआ
वो नज़्म आज भी
रहती है मेरे सिरहाने
पर जो लिखा है
कभी पढ़ा ना गया
पहचान ना सका शब्दों को
हाँ जब भी छुआ उन्हें
वो नम ही मिले हमेशा
और उनके पार मिली
वही आँखें
वो कागज़ भी कभी
पुराना ना हुआ
...रजनीश (28.09.11)
♥
ReplyDeleteसचमुच गीली नज़्म …
बहुत ख़ूब !
आपको सपरिवार
नवरात्रि पर्व की बधाई और शुभकामनाएं-मंगलकामनाएं !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
गीली नज्में आंसू सुखा देती हैं.
ReplyDeleteबहुत खूब लिखा है आपने.
कोमल से एहसास से भीगी सी नज़्म ..
ReplyDeleteसुन्दर कविता
ReplyDeletewo kagaz purana hoga bhi nahi...
ReplyDeletesach me geeli si najm.sunadar
ReplyDeletebahut pyaari komal si najm.
ReplyDeleteभीगे अहसासो की भीगी नज़्म्।
ReplyDeleteकुछ शब्द हमेशा नाम ही मिलते हैं ... सुन्दर रचना !
ReplyDeletebahot khoob......
ReplyDeleteवाकई शब्दों के पीछे की कहानी पढ़ने की नहीं महसूस करने की बात है जो नमी के रूप में अपने निशान छोड़ गयी है... सुंदर अहसासों से सजी नज्म..
ReplyDeleteखुबसूरत एहसास ..
ReplyDeleteसीधा दिल में उतरती,मुस्कान लाती खूबसूरत पंक्तियां...
ReplyDeleteभावों में आस का नयापन बना रहा।
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteइन गीली नज्मों को पढ़ना आसान कहाँ होता है ... लाजवाब रचना है ...
ReplyDeleteबेहतरीन ...गीली नज़्म...
ReplyDeletesundar prstuti...
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