Sunday, January 8, 2012

शुरू हुआ एक साल


शुरू हुआ एक साल नया 
बीती हैं कुछ ही रातें  
सड़कें घर सब भीगे भीगे 
रह रह होती बरसातें 

है मौसम भूला  राह 
दबा उत्साह क्या होगा आगे 
 अन्ना दिशा गए भूल 
छुपाए शूल इक रस्ता मांगे 

शुरू हुआ एक साल नया 
लाया चुनावी हलचल 
नेता भटकेंगे गली गली 
करेंगे सबकी मान-मुनव्वल 

होगा सब कुछ वही 
बात है सही काहे का रोना 
पर लगे रहो  मुन्ना भाई 
 नहीं है बुराई , अब न सोना 

शुरू हुआ एक साल नया 
 अंदर-बाहर का खेल 
कोई फंसा भंवरी के भंवर में 
बड़े नित जाते जेल 

सोच अपनी  है यही 
बात है सही उदास न रहना 
बन जाएगी तक़दीर 
है गर तदबीर प्रेम तुम सबसे करना ...
...रजनीश (08.01.2012)

21 comments:

  1. संवेदनशील प्रस्तुति ..

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  2. आपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 09-01-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर भी होगी। सूचनार्थ

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  3. सुन्दर प्रस्तुति.

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  4. बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........

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  5. बहुत सुन्दर प्रस्तुति.

    बधाई

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  6. Beautiful Sir, the last two lines of the first paragraph are my favorite:)

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  7. सटीक एवं सुन्दर प्रस्तुति,
    बधाई...........

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  8. bahut umda vyangatmak prastuti.nav varsh ki shubhkamnayen.

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  9. आप कि कविता आज के हालात का सही जायजा लेती है...अंतिम पंक्तियाँ बहुत सुंदर हैं.

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  10. बहुत सुन्दर......

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  11. बहुत खूब सर!


    सादर

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  12. बहुत सटीक और सुन्दर प्रस्तुति...

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  13. समसामयिक बातों को रचना में कहा है ..सुन्दर प्रस्तुति

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  14. सुंदर प्रस्तुति....

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  15. भावपूर्ण अभिव्यक्ति..
    kalamdaan.blogspot.com

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  16. सामयिक विषयों को बहुत अच्छी तरह समायोजित किया है, शुभकामनाएं.

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  17. कविता अच्छी लगी । मेरे नए पोस्ट "लेखनी को थाम सकी इसलिए लेखन ने मुझे थामा": पर आपका बेसब्री से इंतजार रहेगा । धन्यवाद। .

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टिप्पणी के लिए धन्यवाद ... हार्दिक शुभकामनाएँ ...