शुरू हुआ एक साल नया 
बीती हैं कुछ ही रातें  
सड़कें घर सब भीगे भीगे 
रह रह होती बरसातें 
है मौसम भूला  राह 
दबा उत्साह क्या होगा आगे 
 अन्ना दिशा गए भूल 
छुपाए शूल इक रस्ता मांगे 
शुरू हुआ एक साल नया 
लाया चुनावी हलचल 
नेता भटकेंगे गली गली 
करेंगे सबकी मान-मुनव्वल 
होगा सब कुछ वही 
बात है सही काहे का रोना 
पर लगे रहो  मुन्ना भाई 
 नहीं है बुराई , अब न सोना 
शुरू हुआ एक साल नया 
 अंदर-बाहर का खेल 
कोई फंसा भंवरी के भंवर में 
बड़े नित जाते जेल 
सोच अपनी  है यही 
बात है सही उदास न रहना 
बन जाएगी तक़दीर 
है गर तदबीर प्रेम तुम सबसे करना ...
...रजनीश (08.01.2012)

संवेदनशील प्रस्तुति ..
ReplyDeleteआपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 09-01-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर भी होगी। सूचनार्थ
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति.
ReplyDeleteबहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति.
ReplyDeleteबधाई
Beautiful Sir, the last two lines of the first paragraph are my favorite:)
ReplyDeletebahot achchi lagi.....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteसटीक एवं सुन्दर प्रस्तुति,
ReplyDeleteबधाई...........
सुन्दर रचना... वाह!
ReplyDeletebahut umda vyangatmak prastuti.nav varsh ki shubhkamnayen.
ReplyDeleteआप कि कविता आज के हालात का सही जायजा लेती है...अंतिम पंक्तियाँ बहुत सुंदर हैं.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर......
ReplyDeleteबहुत खूब सर!
ReplyDeleteसादर
sundar bhaav........
ReplyDeleteबहुत सटीक और सुन्दर प्रस्तुति...
ReplyDeleteसमसामयिक बातों को रचना में कहा है ..सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति....
ReplyDeleteभावपूर्ण अभिव्यक्ति..
ReplyDeletekalamdaan.blogspot.com
सामयिक विषयों को बहुत अच्छी तरह समायोजित किया है, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteकविता अच्छी लगी । मेरे नए पोस्ट "लेखनी को थाम सकी इसलिए लेखन ने मुझे थामा": पर आपका बेसब्री से इंतजार रहेगा । धन्यवाद। .
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