Sunday, February 19, 2012

दूर दर्शन


कुछ आंसू जो कैद थे 
एक रील में 
सिसकियों के साथ 
तरंगों में बह जाते हैं  
जब चलती है वो रील 
सारे लम्हे संग आंसुओं के 
हवा में हो जाते हैं प्रसारित 
एक तरंग में 
उन्हें महसूस कर 
कैद करता है एक तार
और मेरे दर तक ले आता है 
काँच की इक दीवार के पीछे 

एक माध्यम में प्रवाहित हो 
एक किरणपुंज आंदोलित होता है  
और काँच की उस दीवार पर 
नृत्य करने लगती हैं 
प्रकाश की रंग बिरंगी किरणें 
नाचते नाचते 
टकराती हैं आकर 
एक पर्दे से 
मेरी आँखों के भीतर 

जन्म होता है  
एक तरंग का 
जो भागती है 
मस्तिष्क की ओर
उसका संदेश 
लाकर सुनाती है 
मेरी आँखों को 
कुछ आँसू 
ढलक जाते हैं 
मेरी आँखों से 
और आ गिरते हैं 
हथेली पर
और इस तरह
पूरा होता है 
रील में बसे 
आंसुओं का सफर 
  
.....रजनीश (19.02.12)
टीवी देखते हुए

7 comments:

  1. कहानियों में बन्द आँसू धीरे धीरे बहने लगते हैं, कहानी के साथ

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  2. Rajneeshji, adbhut kavita hai yeh. TV dekhte huay itni sundar rachna :)

    Bahut hi marmik aur snehpoorna!

    Regards,
    Shaifali

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  3. सुन्दर भाव ... महाशिवरात्रि की शुभ कामनाएं.

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  4. बहुत सुंदर!
    आभार!

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  5. बहुत कोमल अहसास... आंसुओं से रिश्ता जल्दी बन जाता है.

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टिप्पणी के लिए धन्यवाद ... हार्दिक शुभकामनाएँ ...