पलाश
इस साल भी
दिख जाते हैं
हर रोज बिलकुल वहीं
जहां वो थे पिछले साल भी
बिलकुल वही रंग
पर मेरी आँखों पर
कोई पर्दा है
नज़र खोई रहती है कहीं
पलाश के फूलों
की पुकार भी
टकराती हैं आकर
झकझोरती हैं
मुझे कई बार
पर मैं अनसुनी कर
चलता ही रहता हूँ
गूंजता रहता है
एक नया शोर भीतर
इस साल
चाल भी मेरी
कुछ बदली सी है
एक बार रुका भी
मैं पलाश के सामने
वो एक धुंधली मीठी याद सा
मेरे सामने कहता रहा
पहचानो मुझे ...!
मैं पलटता रहा
यादों के पन्ने
और किताब में
दबे एक पुराने फूल
से पहचाना उसे
बस कुछ पल ही रुके थे
मेरे कदम
उसके करीब और
वक़्त फिर खींच
ले गया मुझे
पिछले साल ही
पलाश को देखते-देखते
रास्ता गुम जाता था
और अब मैं ही
गुम गया हूँ
रास्ते में ..
.......रजनीश (24.03.12)
बाहुत सही बात कह दी पलाश के बहाने।
ReplyDeleteसच कहा आपने, जब पलाश के फूल खीचने लगते हैं तो रास्तों का ख्याल ही नहीं रहता है।
ReplyDeleteThe last para--it is beautiful--it happens to us & we are lost.
ReplyDeleteआभार भाई जी ।
ReplyDeletebahut khoobsurti se likhe hain......
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति..... वाह!
ReplyDeleteसादर.
सुंदर कविता का सृजन. बहुत बधाई.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया,बेहतरीन करारी अच्छी प्रस्तुति,..
ReplyDeleteनवरात्र के ४दिन की आपको बहुत बहुत सुभकामनाये माँ आपके सपनो को साकार करे
आप ने अपना कीमती वकत निकल के मेरे ब्लॉग पे आये इस के लिए तहे दिल से मैं आपका शुकर गुजर हु आपका बहुत बहुत धन्यवाद्
मेरी एक नई मेरा बचपन
कुछ अनकही बाते ? , व्यंग्य: मेरा बचपन:
http://vangaydinesh.blogspot.in/2012/03/blog-post_23.html
दिनेश पारीक
बहुत बढ़िया,बेहतरीन करारी अच्छी प्रस्तुति,..
ReplyDeleteनवरात्र के ४दिन की आपको बहुत बहुत सुभकामनाये माँ आपके सपनो को साकार करे
आप ने अपना कीमती वकत निकल के मेरे ब्लॉग पे आये इस के लिए तहे दिल से मैं आपका शुकर गुजर हु आपका बहुत बहुत धन्यवाद्
मेरी एक नई मेरा बचपन
कुछ अनकही बाते ? , व्यंग्य: मेरा बचपन:
http://vangaydinesh.blogspot.in/2012/03/blog-post_23.html
दिनेश पारीक
सुन्दर शब्द सटीक अभिव्यक्ति।
ReplyDeletebhag daud me bhoolte palash ....
ReplyDeletegahan abhivyakti ....