Sunday, June 3, 2012

गर्मी

गरम लू के थपेड़ों में
झुलस जाते हैं कुछ अरमान
भाप हो जाती हैं 
कुछ ख़्वाहिशें 
वक़्त बन जाता है 
अंगारों भरी सड़क 
जलता है फ़र्श 
और तपती हैं दीवारें 
झील सूख कर 
बन जाती है आईना 
ख़ुश्क हवा के हथौड़े 
बदन को लाल कर देते हैं 
गरम पलकों के घर 
में रहते आँसू भी सूख जाते हैं 

मर जाएँ कुछ ख्वाहिशें 
अधूरे पड़े रहें अरमान 
पर सूरज की किरणें 
झुलसा नहीं पाती 
मन की दीवारों को 
क्यूंकि वहाँ मौसम 
पर न कोई क़ाबू है 
न कोई बंधन 
कभी भी बारिश और 
कभी भी जलन  
और सूरज के कहर से 
भाप नहीं हो पाती 
पेट की भूख 
जिसके लिए 
मौसम की इस तपिश में 
हाथों को बार बार 
झुलसते देखा है 

इसीलिए किसी के लिए 
ये गर्मी है एक दर्द
और किसी के जीने का सहारा 
....रजनीश (03.06.2012)

8 comments:

  1. सुन्दर कविता

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  2. i love your poetry-it is very meaningful,thought provoking & so well expressed.Why don't you publish them ,or have you done it already?

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  3. गर्मी सब कुछ सुखा देती है, सुख भी, दुख भी।

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  4. बहुत गहन ... गर्मी का बिम्ब सटीक है

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  5. आपकी इस उत्कृष्ठ प्रविष्टि की चर्चा कल मंगल वार 29/5/12 को राजेश कुमारी द्वारा
    चर्चामंच मंच पर की जायेगी |

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  6. वाकई मार्मिक कविता है

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  7. गर्मी का भी अपना एक बहुत बड़ा महत्व है...
    गर्मी का जीवंत चित्रण पढने को मिला ...

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टिप्पणी के लिए धन्यवाद ... हार्दिक शुभकामनाएँ ...