एक रोशनी
बुझते बुझते
एक आग दे गई
दरिंदगी से लड़ती
एक आवाज़ दे गई
खो गई
कहीं आसमां में
इक राह दे गई
हैवानियत ख़त्म करने की
एक चाह दे गई
जूझती रही
बिना थके
दुनिया हिला गई
अत्याचार से लड़ने
कई दिल मिला गई
ना खत्म हो ये जज़्बा
ये सैलाब रुक ना जाए
इक शहादत से जली
ये मशाल बुझ न पाए...
....रजनीश
(05.01.2013)
बहुत मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति...इस लौ को जलाये रखना है...
ReplyDeleteman ko jhkjorti rachna....aag jalti rahni chaiye....
ReplyDeleteआस देश की जीवित अब भी, व्यर्थ नहीं जायेगा कुछ भी।
ReplyDeleteयह बलिदान बेकार नहीं जाने देना है यह हम सभी की जिम्मेदारी है.
ReplyDeleteसचमुच इस बलिदान को व्यर्थ नहीं जाने देना है..इस मशाल को जलाये रखना है
ReplyDeleteइस आक्रोश का कोई परिणाम निकलना चाहिए
ReplyDeleteसशक्त और प्रभावशाली रचना.....
ReplyDeleteगहरे भाव लिए रचना |बहुत सुन्दर और संदेशात्मक |
ReplyDeleteआशा
ज्वाला प्रज्ज्वलित रहने की ज़रुरत है. सुन्दर रचना.
ReplyDeletebehad prabhavshali prastuti badhai ke sath abhar bhi
ReplyDeleteaisa hi ho......
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी रचना...
ReplyDeleteumda rachna
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