है सूरज निकल पूरब से
जाता हर रोज़ पश्चिम की ओर
पानी लिए नदियां हर पल
हैं मिलती रहती सागर में
बादल बरस बरस कर
करते रहते हैं वापस
जो धरती से लिया,
हर साल हरी हरी चादरें
ढँक लेती है धरती को इक बार
एक नृत्य हर वक्त
चलता रहता है
संगीत की लहरों पर
बदलते रहते हैं पत्ते
और बदलते पेड़ भी
देखती हैं बदलती फसलों को
खेत की मेड़ भी
ज़िंदगी हर पल लेती सांस
फूटती कोपलों, पेड़ की डालों में
घोसलों, माँदों में पनपती असल ज़िंदगी
ना है ख्वाबों ना ख़यालों में
सब कुछ कितना नियत
कितना सरल
एक रंग बिरंगा चक्र
पर नहीं जाती मिट्टी की खुशबू
बंद नहीं होता चहकना
बंद नहीं होती पानी की कलकल
बंद नहीं होता पत्तों का हवा संग उड़ना
नहीं फीका पड़ता और
नहीं बदलता कोई भी रंग
सब कुछ वैसा ही खूबसूरत
रहा आता है समय की परतों में
पर अंदर इस संसार के
है संसार और एक
बहुत अजीब और बहुत ही गरीब
जहां रुक जाया करता है सूरज
सुबह नहीं होती कभी कभी
और कभी बहुत जल्दी आ जाती है शाम
जहां सावन में भी हो जाता है पतझड़
जहां दिन के उजाले में भी अक्सर
नहीं धुल पाता रात का अंधेरा
जहां नृत्य में भी बस जाता है शोक
जहां से नज़र नहीं आता आँखों को
कायनात का खूबसूरत खेल
जहां नहीं सब कुछ सरल और सीधा
जहां है बहुत कुछ बनावटी
जहां बदरंग लगते नज़ारे
जहां गीत नहीं देता राहत
अजीब सी बात है
जब भी इस झूठी चहारदीवारी
को लांघने की कोशिश करता हूँ
कभी खुद लौट जाते हैं पैर
कभी कोई पकड़कर
खींच लेता है वापस
और मैं खड़ा इस गरीब
और झूठे संसार से
झांक-झांक बाहर
यही सोचता हुआ हैरान हूँ
कि टूट क्यूँ नहीं जाती
ये मोटी-मोटी दीवारें
ताकि सामने के उस असली संसार से
महक लिए ठंडी मंद बयार
मुझ तक भी आ पहुँचती
और हर सुबह सुबह ही होती
और हर शाम होती एक शाम ...
रजनीश (13.03.2013)
कहाँ टूट पाती हैं ये दीवारें .... संवेदनशील विचार
ReplyDeleteहर सुबह सुबह ही होती,और हर शाम होती एक शाम,
ReplyDeleteजीवन का चलने वाला एक क्रम जो चाह कर भी नहीं बदल पाता,सुन्दर भावपूर्ण कविता.
बहुत गहन सोच..प्रकृति ने नहीं बनाई है कोई दीवार..वहाँ तो सब सबके लिए है..
ReplyDeleteबहुत गहन सोच..प्रकृति ने नहीं बनाई है कोई दीवार..वहाँ तो सब सबके लिए है..
ReplyDeleteऔर बस इसी क्रम में घिरा जीवन।
ReplyDeleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteऔर हर सुबह सुबह ही होती
ReplyDeleteऔर हर शाम होती एक शाम...
बेहतरीन कविता. सुंदर लेखन.
दीवारों का टूटना बहुत मुश्किल होता है
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना....
ReplyDeleteसादर
अनु