हवा में हरदम ऊंचा उड़ता है
कभी जमीं पर चलकर देख,
फूलों का हार पहन इतराता है
कभी कांटे सर रखकर देख,
दौलत और दावतें उड़ाता है
कभी जूठन चखकर देख,
बस पाने की जुगत ही करता है
कभी कुछ अपना खोकर देख,
अपनी जीत के लिए खेलता है
कभी औरों के लिए हारकर देख,
जो नहीं उसके लिए ही रोता है
कभी जो संग उसके हँसकर देख,
बस किताबें पढ़ता रहता है
कभी चेहरों को पढ़कर देख,
औरों के रास्ते ही चलता है
कभी अपनी राह चलकर देख,
दूसरों के घर झाँकता रहता है
कभी अपने घर घुस कर देख...
......रजनीश (24.04.2013)
प्रेरणादायक कविता !
ReplyDeleteसिक्के में दोनों पहलू हों..
ReplyDeletesahi baat...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर.
ReplyDeleteअपनों को तो बहुत आजमाए ,कभी गैरों को भी आजमाँ के देख -बहुत सुन्दर.
ReplyDeleteडैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
latest post बे-शरम दरिंदें !
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Khoob Kaha.....Behtreen Panktiyan
ReplyDeletebahut badhiya
ReplyDeleteदूसरों के घर झांकता रहता है,
ReplyDeleteकभी अपने घर घुस कर देख
सुन्दर, वास्तिवकता से परिचित कराती सुन्दर कविता
दूसरों के घर झांकता रहता है,
ReplyDeleteकभी अपने घर घुस कर देख
सुन्दर, वास्तिवकता से परिचित कराती सुन्दर कविता
वाह..यह जनाब हैं कौन..शुरू में लगा राजनीतिज्ञ..पर अंत आते-आते तो कुछ अपनी सी ही बात लगी...
ReplyDeleteयशवंत जी ने सही सोचा....मुझे पढ़ने ये पढ़ने का अवसर तो इस लिंक की वजह से ही प्राप्त हुआ....शुक्रिया ....सुन्दर रचना..
ReplyDeletebahut sunder
ReplyDeleteअपने अंदर झांकने का वक्त ही किस के पास है ?????
ReplyDeletenice suggestions :)
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