Sunday, April 28, 2013

रविवार महिमा


इस दिन ना हो चाकरी, ना हो कोई काम I
संडे के दिन बैठ कर, घर पर करो आराम II1II

 छह दिन चक्की पीसते, ज्यों कोल्हू का बैल I
खटते थकपक जात हैं, निकल जात है तेल II2II
 
 छह दिन भागमभाग है, घटता जाता है जोश ।
संडे कब हैं पूछते, हो जाते हैं बेहोश II3II

हर हफ्ते में एक बार, पल आनंद का आय I
संडे आंखे खोल जब, नज़र अख़बार पे जाय II4II
 
 देर से होती भोर है, होता धीरे हर काम I
ना होती है झिक-झिक, ना मिलता है जाम II5II

काहे का है संडे, इस दिन काहे का त्योहार ।
जब घर के सारे काम मिल, करते हों इंतजार II6II

छह दिन घर के काम को, रहते संडे पर टाल
संडे में हालत बुरी , हो जाते है बेहाल II7II

किस्मत वालों को मिला, “शनि-रवि” का मज़ा
किसी का संडे-मंडे एक है , हर दिन एक ही सज़ा II8II

 संडे हर सप्ताह में, आता क्यूँ इक बार ।
मैं होता तेरी जगह, हफ्ते में रख देता दो-चार II9II

 ...... रजनीश (28.04.2013)
संडे अर्थात रविवार पर

7 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति !!
    डैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
    अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
    latest postजीवन संध्या
    latest post परम्परा

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  2. वाह, सभी सपने सण्डे तक बाट जोहते हैं।

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  3. संडे के दिन बैठ कर , घर पर करो आराम.

    आईडिया तो सुंदर है.

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  4. किस्मत वालों को मिला शनि रवि का मजा

    बाकी के पाँच दिन उनका निकाल लेते हैं पूरा तेल

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  5. हमारे लिए सन्डे कब आएगा ?????

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टिप्पणी के लिए धन्यवाद ... हार्दिक शुभकामनाएँ ...