Thursday, February 5, 2015

हसरतें



इक रास्ता जो था मिला, इक रास्ते में खो गया
इक सपना जो था दिखा, इक सपने में खो गया

प्यार की बगिया लगाने, बनाई थीं कुछ क्यारियाँ
बीज नफ़रत के न जाने, कौन उनमें बो गया

कुछ रेत ही मिल सकी, बनाया था इक आशियाँ
वो किनारा भी मेरा , समंदर का पानी धो गया

उसकी ख़िदमत की बड़ी हसरत से की तैयारियां
कहाँ रुकना था उसे बस ये आया और वो गया

सोचा था चलो एक चाँद है संग ऊपर आसमां
देखने बैठा था उसे , वो बादलों में खो गया

………..रजनीश (05.02.15)

3 comments:

  1. जीवन ऐसा ही है...

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  2. बहुत सुन्दर

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  3. नमश्कार रजनीश जी! मैं पिछले आधे घंटे से आपकी विभिन्न कविताय पढ़ रही हूँ और काफ़ी प्रभावित हुई हूँ| आपकी कविताओं में कुछ तो है जो दिल को चू जाता हैं| आप बस ऐसे ही लिखते रहे|
    धन्यवाद!

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टिप्पणी के लिए धन्यवाद ... हार्दिक शुभकामनाएँ ...