Sunday, November 29, 2015
धुंध
अब सूरज को
रोज ग्रहण लगता है
सूरज लगता है निस्तेज
सूरज की किरणों पर तनी
इक चादर मैली सी
जिसे ओढ़ रात को चाँदनी भी
फीकी होती दिन-ब-दिन
धुंध की चादर फैली
सड़कों गलियों से
जंगलों और पहाड़ों तक
कराती है एहसास
कि हम विकसित हो रहे हैं ...
....रजनीश (29.11.15)
2 comments:
कविता रावत
November 30, 2015 at 6:04 PM
पर्यावरण के प्रति सचेत करती सार्थक रचना।
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Onkar
December 6, 2015 at 4:44 PM
सही कहा
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टिप्पणी के लिए धन्यवाद ... हार्दिक शुभकामनाएँ ...
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पर्यावरण के प्रति सचेत करती सार्थक रचना।
ReplyDeleteसही कहा
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