पर्यावरण दिवस
की जरूरत
तय हो गयी थी
उसी वक्त
जब पहली बार
पत्थर रगड़कर
आग बनाई थी हमने
पेड़ कभी याद आएंगे
तय हो गया था
उसी वक्त
जब पहला पेड़
काटा था हमने
बेदम हो जाएंगी साँसे
तय हो गया था
उसी वक्त
जब जल से हटकर
कोई द्रव
बनाया था हमने
शोषण होगा धरा का
ये तय हो गया था
उसी वक्त
जब कुछ तलाशने
पहली बार चीर
छाती धरा की
एक गड्ढा बनाया था हमने
ये सब तय था
क्योंकि हमारी दौड़ ही है
अधिक से अधिक
पा लेने की
जीवकोपार्जन के नाम पर
दोहन हमारा स्वभाव ,
दिमाग चलता है हमारा,
एक होड़ के शिकार हैं हम
क्योंकि,
विकासशील हैं हम
आविष्कारक हैं
अन्वेषक हैं
प्रगतिशील हैं
प्रबुद्ध और सर्वोत्कृष्ट
प्रजाति हैं हम
हमारी जरूरतें
हमारी जिम्मेदारियों से
हमेशा आगे रहीं हैं,
तो अब मनाते रहें
पर्यावरण दिवस
••••••रजनीश (05/06/17)
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन जन्म दिवस : सुनील दत्त और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteसुंदर और सार्थक सच को उजागर करती रचना
ReplyDeleteबधाई
धन्यवाद
Deleteबहुत बढ़िया
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Deleteबहुत प्रभावी रचना ही ... गहन चिंतन के साथ ...
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