आँधियाँ ही तय करेंगी उस नाव का किनारा
फँसी हो मझधार में पर जिसमें पतवार ना हो
फँसी हो मझधार में पर जिसमें पतवार ना हो
ना बहारों की चाहत ना महलों की ख्वाहिश
बस साँसें चलती रहे और जीना दुश्वार ना हो
बस साँसें चलती रहे और जीना दुश्वार ना हो
गर आसाँ हो रास्ता तो मंजिल मजा नहीं देती
वो मोहब्बत भी क्या जिसमें इन्तजार ना हो
वो मोहब्बत भी क्या जिसमें इन्तजार ना हो
घिर चाहतों , गुरूर , खुदगर्जी में घुटता दम
ऐसा घर बनाएँ जिसमें कोई दीवार ना हो
ऐसा घर बनाएँ जिसमें कोई दीवार ना हो
......रजनीश (24.03.18)
http://bulletinofblog.blogspot.com/2018/03/blog-post_25.html
ReplyDeleteबहुत खूब ।
ReplyDeleteबहुत खूब ।
ReplyDeleteवाह ! बेहद उम्दा
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteभावपूर्ण बेहद उम्दा
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