Thursday, October 15, 2020

वक्त बीतता गया

वक्त बीतता गया 
लम्हा दर लम्हा 
मैं कुछ जीतता गया 
कुछ भीतर रीतता गया 

वक्त बीतता गया 
लम्हा दर लम्हा 
मैं कुछ जोड़ता गया
कुछ पीछे छोड़ता गया 

वक्त बीतता गया 
लम्हा दर लम्हा 
मैं कुछ जुटाता गया 
कुछ यूं ही लुटाता गया 

वक्त बीतता गया 
लम्हा दर लम्हा 
मैं कुछ निभाता गया 
कुछ रिश्ते भुलाता गया

वक्त बीतता गया 
लम्हा दर लम्हा 
मैं कुछ अपनाता गया
कुछ मौके ठुकराता गया

वक्त बीतता गया
लम्हा दर लम्हा 
मैं सब को हंसाता गया 
कभी खुद को रुलाता गया 

वक्त बीतता गया 
लम्हा दर लम्हा 
मैं जीवन की बगिया
सींचता गया 
 वक्त बीतता गया 

..... रजनीश (१५.१०.२०२०, गुरुवार)

3 comments:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (१७-१०-२०२०) को 'नागफनी के फूल' (चर्चा अंक-३८५७) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    --
    अनीता सैनी

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  2. सही कहा वक्त के साथ बहुत कुछ घटित होता चला जाता है ...कुछ अच्छा तो कुछ बुरा भी...
    बहुत सुन्दर सृजन

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टिप्पणी के लिए धन्यवाद ... हार्दिक शुभकामनाएँ ...