Saturday, February 5, 2011

आँसू

DSCN3524
कुछ बेवफ़ा बूंदों ने
छोड़ दिया दामन,
और अँखियों को रुला ,
जमीं की हो गईं ....
......
एक  बूंद और थी ,
जिसने न छोड़ा हाथ और
न दिया साथ
वो  किनारे पर बैठी –बैठी 
हवा में खो गई...
....
पर पलकों के साये में ,
जो झील रहती है,
उसमें बहुत पानी है ....
उसे कुछ गहरा किया है
और किनारों पर
थोड़ी मिट्टी डाली है ....
अगले सावन में तो पूरी भर जाएगी ।
.......रजनीश (05.02.2011)

4 comments:

  1. पर पलकों के साये में ,
    जो झील रहती है,
    उसमें बहुत पानी है ....
    उसे कुछ गहरा किया है
    और किनारों पर
    थोड़ी मिट्टी डाली है ....
    अगले सावन में तो पूरी भर जाएगी ।

    उफ़! दर्द का गहन चित्रण किया है ।

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टिप्पणी के लिए धन्यवाद ... हार्दिक शुभकामनाएँ ...