Sunday, February 27, 2011

कुछ प्रश्न...

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[1]
जीवन ,माना चक्र है ।
पर कहते हो
है ये   सीढ़ी भी ,
कहाँ  टिकी ऊपर  ये सीढ़ी ?
वो छोर,
क्यूँ नहीं दिखता है ?

[2]
प्रेम धुरी से बंधे,
दो पहिये,
जीवन पथ पर चलते हैं ।
इसे हाँकता कौन  सारथी ?
वो  चेहरा,
क्यूँ  नहीं  दिखता है ?

[3]
तुमने छोड़ दिया था ,
सब कुछ ,
क्या सच में  वो अब पास नहीं ?
त्याग  तुम्हारा,
हरपल रहते   दंभ  के संग
क्यूँ दिखता है ?

[4]
प्रेम तुम्हें है
प्रेम मुझे है,
और अगर  एकात्म हैं हम ।
फिर हरदम, हमारे बीच
रखा ये समझौता
क्यूँ दिखता है ?

[5]
प्रखर मस्तिष्क,
संवेदनशील,
और  है निपुण  सम्प्रेषण में ,
फिर वो दोपाया, पूंछकटा
जानवर सा
क्यूँ दिखता है ?
.....रजनीश (27.02.2011)

6 comments:

  1. विचारणीय प्रश्न हैं।

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  2. हर एक क्षणिका अपने आपमें लाजवाब

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  3. बहुत खूब रजनीश जी ! हार्दिक शुभकामनायें !

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टिप्पणी के लिए धन्यवाद ... हार्दिक शुभकामनाएँ ...