रोज गुजरता हूँ इधर से
वही रास्ता हर दिन जैसे
एक चक्कर में घूमती जिंदगी,
और मिलता है वही पलाश
जो इतराता था कल तक
अपने मदमस्त फूलों पर,
अब मायूस खड़ा रहता है
खोया सा पेड़ों के झुंड में,
कभी मैंने भी की थी कोशिश
कि उसका कुछ रंग चढ़े मुझ पर ,
आज वो खुद दिखता बदरंग , बैचेन
जैसे खो गई हो उसकी पहचान,
दिन तो फिरे हैं अभी
उस घमंडी गुलमोहर के,
जो चार कदम दूर ही मिलता है,
पलाश को मुँह चिढ़ाता
पुराना बदला लेता,
चटख लाल हुआ जा रहा है
जैसे ढेरों सूरज उगे हों,
इसी रास्ते से गुजरती है एक गाड़ी
पलाश पढ़ता है गाड़ी पर लिखी इबारत
'दूसरे की दौलत देखकर हैरान न हो
ऊपर वाला तुझे भी देगा परेशान न हो',
मैंने दोनों से ही कहा, पगलों!
व्यर्थ हो जलते , व्यर्थ ही कुढ़ते
क्यों भूलते मौसम एक दिन
पतझड़ का भी आता है
पर गम न करो वो झोली में
फिर से एक बसंत दे जाता है ...
...रजनीश( 26.04.11)
क्यों भूलते मौसम एक दिन
ReplyDeleteपतझड़ का भी आता है
पर गम न करो वो झोली में
फिर से एक बसंत दे जाता है ...
शुभ और सार्थक सन्देश. बधाई.
पर गम न करो वो झोली में
ReplyDeleteफिर से एक बसंत दे जाता है ...
आशा पर दुनिया कायम है.......
उम्दा कविता.....
sunder bhaav ....
ReplyDeletesarthak rachna ..!!
फूलों और पेड़ों के प्रति आपका सहज प्रेम देख कर बहुत खुशी हुई और हमारे यहाँ तो अभी तो पलाश खिल रहा है गुलमोहर को अभी प्रतीक्षा करनी है...
ReplyDeleteक्यों भूलते मौसम एक दिन
ReplyDeleteपतझड़ का भी आता है
पर गम न करो वो झोली में
फिर से एक बसंत दे जाता है ...
बहुत सार्थक और सटीक प्रस्तुति..सब का समय एक स नहीं रहता...बहुत सुन्दर
bhut hi khubsurat....
ReplyDeleteशुभ और सार्थक सन्देश|धन्यवाद|
ReplyDeleteनिराला की कुकुरमुत्ता और गुलाब की बहस ताज़ा हो गयी . बधाई .
ReplyDeleteसुन्दर और सार्थक सन्देश
ReplyDeleteमौसम को इतने सुन्दर ढंग से कविता में पिरोने के लिए हार्दिक बधाई...
ReplyDeleteLajawaab ... mousam ki kshata bikherti sundar rachna ...
ReplyDeleteSundar rachna... Blog jagat me naya hun... Mujhe ashirwad de apne cmnt k rup me... avinash001.blogspot.com
ReplyDelete