Saturday, May 7, 2011

खुशी के गीत

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करना होता है हत्यारे का अंत
हमें देना पड़ता है उसे दंड ,
पर नहीं ये कोई सच्ची जीत
कैसे हम गाएं खुशी के गीत..

है  ये एक बेहद संगीन ज़ुल्म 
जब कोई  करता  है इंसान का खून,
वो खत्म कर देता है एक जीवन
एक संसार में छा जाता है  मौन..

दंड  दे,  हत्यारे को मारना  पड़ता है
बेशक खो चुका हो जो सब अधिकार,
छोड़ सारी संभावनाएं उसे जाना पड़ता है
असली सजा   भुगतता है उसका परिवार..

कैसे गाएं ? गर जारी हो बदस्तूर
हर तरफ इंसानों का बेमौत मरना,
जब जगह न बची हो कारागार में
और भरा हो पशुओं से हर कोना..

उसे सज़ा जरूर दो तुम मौत की
जिसने घोंटा इंसानियत का गला,
पर अब लगाओ कोई ऐसी जुगत
हो ख़त्म , ये मौतों का सिलसिला..

जब नहीं मरेगा कोई बेमौत
तब होगी हमारी असली जीत,
मरेगा जब अंदर बैठा हैवान
तब हम  गाएँगे  खुशी के गीत ...
...रजनीश (07.05.2011)

12 comments:

  1. गहन वेदना ...
    व्यथित कर गयी मन ....
    एक -एक पंक्ति में सार ही सार है ...
    बहुत सुंदर रचना ...!!

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  2. आभार,
    विचारणीय.
    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।

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  3. उसे सज़ा जरूर दो तुम मौत की
    जिसने घोंटा इंसानियत का गला,
    पर अब लगाओ कोई ऐसी जुगत
    हो ख़त्म , ये मौतों का सिलसिला..


    अंतर्मन की वेदना लिए सुंदर आव्हान ......बेहतरीन रचना

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  4. जब नहीं मरेगा कोई बेमौत
    तब होगी हमारी असली जीत,
    मरेगा जब अंदर बैठा हैवान
    तब हम गाएँगे खुशी के गीत ...

    बहुत सही बात कही आपने सर!

    सादर

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  5. संवेदनशील अभिव्यक्ति

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  6. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (9-5-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

    http://charchamanch.blogspot.com/

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  7. bhut hi bhaavmayi aur gahraayi hai apki rachna me...

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  8. बहुत सुंदर रचना.

    मातृदिवस की शुभकामनाएँ.

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  9. prakhar bhavmayi kavita ---


    जब नहीं मरेगा कोई बेमौत
    तब होगी हमारी असली जीत,
    मरेगा जब अंदर बैठा हैवान
    तब हम गाएँगे खुशी के गीत ...

    sunder lagi . abhar

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  10. भावपिरणव रचना को पढ़वाने के लिए आभार!

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  11. जब नहीं मरेगा कोई बेमौत
    तब होगी हमारी असली जीत,
    मरेगा जब अंदर बैठा हैवान
    तब हम गाएँगे खुशी के गीत ...

    सच कहा ... आमीन ... जल्दी ही आए वो लम्हा ...

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  12. मृत्युदंड की व्यर्थता को बताती सुंदर कविता !

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टिप्पणी के लिए धन्यवाद ... हार्दिक शुभकामनाएँ ...