Wednesday, May 25, 2011

चेहरे

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एक चेहरा
जो सिर्फ एक चेहरा है मेरे लिए 
दिख जाता है अक्सर
जब भी पहुंचता हूँ चौराहे पर,
एक चेहरा हरदम सामने रहता है
चाहे कहीं से भी गुज़रूँ

कोई चेहरा होता है अजनबी पर
लगता जाना पहचाना,
कभी चलते चलते मिल जाता है
कुछ नई परतों के साथ
कोई चेहरा जो दोस्त था,
कभी ऐसा  चेहरा मिल जाता है 
पुराना जो दोस्त न बन सका था

कोई चेहरा ऐसा जिसे मैं पसंद नहीं
कोई ऐसा जो मुझे न भाया कभी
कुछ चेहरे कभी ना बदलते और
हैं हरदम बदलते हुए चेहरे भी
चेहरों पर चढ़े चेहरे मुखौटे जैसे
चेहरों से उतरते चेहरे नकली रंगों जैसे

हर चेहरे में एक आईना है
हर चेहरा अनगिनत प्रतिबिंब है
अगर कोई और देखे तो
वही चेहरा दिखता है कुछ और
हर गली चेहरों की नदियां
हर चौराहा चेहरों का समंदर है

अंदर बनते बिगड़ते खयालात
जागते सोते जज़्बात
सभी जुड़े चेहरों से
सूनी वादियों में भी दिख जाता
कोई चेहरा
बादलों , समुंदर की लहरों ,ओस की बूंद
और आँखों से टपकते मोती में भी चेहरे

एक चेहरा दिखता आँखें बंद करने पर
( एक चेहरा नहीं दिखता आंखे खुली होने पर भी !)

मैं ही हूँ इन चेहरों मैं
तुम भी हो इन चेहरों मैं
मैं एक बूंद नहीं चेहरों की नदी हूँ
नदी ही क्यूँ समुंदर हूँ
और तुम भी

बिना चेहरों के न भूत है न भविष्य
न हर्ष है न विषाद
न कुछ सुंदर न वीभत्स 
और वर्तमान भी  शून्य है
अगर चेहरे नहीं तो
  न मैं हूँ न तुम
...रजनीश (24.05.2011)

8 comments:

  1. हर चेहरे में एक आईना है
    हर चेहरा अनगिनत प्रतिबिंब है
    अगर कोई और देखे तो
    वही चेहरा दिखता है कुछ और
    हर गली चेहरों की नदियां
    हर चौराहा चेहरों का समंदर है
    ......
    एक चेहरा दिखता आँखें बंद करने पर
    ( एक चेहरा नहीं दिखता आंखे खुली होने पर भी !)
    .......
    एक व्यक्ति के रूप अनेक !
    किसी का व्यक्तित्व एक सांचे में नहीं होता
    सामाजिक पारिवारिक राजनैतिक आर्थिक
    हर सांचे का अपना एक सच होता है
    कौन कितनी देर मिलता है
    कहाँ मिलता है
    उसके विषय उसकी बोली उसकी चाल
    व्याख्या हमेशा अलग अलग होती है
    रूचि अरुचि सब मायने रखती है
    एकांत और भीड़ में
    एक ही छवि बदल जाती है

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  2. बिना चेहरों के न भूत है न भविष्य
    न हर्ष है न विषाद
    न कुछ सुंदर न वीभत्स
    और वर्तमान भी शून्य है
    अगर चेहरे नहीं तो
    न मैं हूँ न तुम.


    बहुत सुन्दर ...
    जीवन दर्शन से परिपूर्ण रचना...

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  3. बेहद गहन और उम्दा भावाव्यक्ति।

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  4. बिना चेहरों के न भूत है न भविष्य
    न हर्ष है न विषाद
    न कुछ सुंदर न वीभत्स
    और वर्तमान भी शून्य है
    अगर चेहरे नहीं तो
    न मैं हूँ न तुम

    ....बहुत गहन अहसास..बहुत सुन्दर और विचारणीय प्रस्तुति..

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  5. चेहरों के पीछे की सच्चाई को उघाड़ती एक सशक्त रचना !

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  6. बिना चेहरों के न भूत है न भविष्य
    न हर्ष है न विषाद
    न कुछ सुंदर न वीभत्स
    और वर्तमान भी शून्य है
    अगर चेहरे नहीं तो
    न मैं हूँ न तुम.

    दिल सच्चा और चेहरा झूठा. भावनात्मक प्रस्तुति.

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टिप्पणी के लिए धन्यवाद ... हार्दिक शुभकामनाएँ ...