माफ कीजिएगा , पुन: एक पुरानी पोस्ट ...
ये तो प्यार की चाहत है,
जो करती है प्रेम !
ये देने वाला मैं नहीं ,
ये तो इच्छा है , पाने की;
ये मैं नहीं ,
बेबसी जो करती है गुस्सा;
विचार कर रहे संघर्ष;
ये मैं नहीं,
डर है, जो दिखाता अपनापन ;
ये मैं नहीं
है कमजोरी , जो करती है हिंसा
ये मैं नहीं ,
अज्ञान है जो करता विवाद;
ये मैं नहीं ,ये तो दंभ है
जो लड़ता है किसी और दंभ से ...
ये मैं नहीं ,
ये अधूरापन है जो
करता है ईर्ष्या,
ये मैं तो नहीं ,
खुश होती केवल इंद्रियां ,
ये मैं नहीं,
तुम्हें बुरी लगती है
मेरी बोलने की आदत;
तुम्हें मुझसे नहीं ,
ईर्ष्या है विजय से;
तुम मुझसे नहीं,
नाराज हो दंभ से;
ये मैं नहीं,
शायद तुम्हें पसंद है सादगी ,
शायद संगीत तुम्हें नचाता है,
ये मैं नहीं,
तुम्हारा विरोध है परिस्थिति से,
ये मैं नहीं ,
तुम शायद खफा हो किस्मत से,
ये मैं नहीं ,वो मै नहीं,
फिर मैं हूँ कौन?
मैं क्या हूँ...
याने ...रजनीश!!
नहीं...ये तो संज्ञा है, एक संबोधन ...
भावनाओं /परिस्थितियों की एक गठरी का नाम है
'पर ये सिर्फ मेरी तो नहीं तुममें भी हैं , तुम्हारी भी हैं ....
फिर मैं कहाँ हूँ ?
और बाई-दि-वे, तुम कहाँ हो ??
.....रजनीश (06.12.10)
वाह ! बहुत सुंदर ! इसी को तो शास्त्रों में नेति नेति कहते हैं, सबको नकार कर कुछ भी तो नहीं बचता वही तो हम हैं शायद खाली एक शून्य मात्र !
ReplyDeleteपुरानी पोस्ट ?
ReplyDeleteनहीं भाई
मैंने तो अभी-अभी पढ़ी --
पर आप बोलेंगे --
मैं
मैं कौन
बस हो गया मौन ||
चलो खोजते हैं इस मैं और उस तुम को
और बाई-दि-वे, तुम कहाँ हो ??
ReplyDeletewah.kya line hai......
बहुत सुन्दर रचना...महोदय आपकी यह उत्कृष्ट रचना दिनांक 19-07-2011 को मंगलवारीय चर्चा में चार्चा मंच पर भी होगी कृपया आप इस http://charchamanch.blogspot.com/ लिंक पर पधार कर अपने सुझावों से अवगत कराएं
ReplyDeleteबेहतरीन अभिवयक्ति...
ReplyDeleteनिर्वैयक्तिक भावों के बावजूद कविता आकर्षित करती है !
ReplyDeleteवाह सुंदर
ReplyDeleteबेहतरीन.
ReplyDeleteसादर
कल 18/07/2011 को आपकी एक पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
भाई रजनीश जी बहुत अच्छा लिखते हैं आप बधाई और शुभकामनायें |
ReplyDeleteआपकी पुरानी पोस्ट तो नहीं पढ़ सकी अभी पढ़ने का मौका देने के लिए धन्यवाद
ReplyDeleteबहुत गहन चिंतन...बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना!
ReplyDeletebahut hi sunder abhi byakti.sunder chitron ka chyan.badhaai aapko.
ReplyDeleteplease visit my blog.thanks.
main to aapko pahli baar padh rahi hoon.bahut achchi abhivyakti.bahut achchi rachna hai.aapki photography bhi kaabile tareef hai.
ReplyDeleteआपकी पुरानी पोस्ट तो नहीं पढ़ सकी अभी पढ़ने का मौका देने के लिए धन्यवाद||
ReplyDeleteलिकं हैhttp://sarapyar.blogspot.com/
आपको मेरी हार्दिक शुभकामनायें.
अगर आपको love everbody का यह प्रयास पसंद आया हो, तो कृपया फॉलोअर बन कर हमारा उत्साह अवश्य बढ़ाएँ।
अपने विचारो को बहुत ही बेहतरीन तरीके से परोसा है आपने
ReplyDeleteवाह ...बहुत ही खूबसूरत यह सचित्र प्रस्तुति बेहतरीन ।
ReplyDeleteखुद को तलाश करती रचना ... लाजवाब ...
ReplyDeleteबेहतरीन....
ReplyDeleteखुबसूरत अभिव्यक्ति रजनीश जी,
ReplyDeleteसादर...
शानदार अभिव्यक्ति!!!
ReplyDeleteमैं को तलाशती बेजोड़ रचना.
ReplyDeletebahut acchi rachna..badhayi
ReplyDeleteअच्छा हुआ की आप मेरे ब्लॉग में आये वरना आपके ब्लॉग तक पहुँचने में और वक्त शायद लग जाता.... कविता बहुत अच्छी लगी उससे ज्यादा अच्छे लगे आपके द्वारा खींचे गए तस्वीरों का सिलसिला. बहुत सुन्दर तस्वीरें है सभी.... एक पल को कैद करना यह कला आपमें खूब है....
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