हुई ख्वाबों ख़यालों की बातें पुरानी
सुनाता हूँ तुमको आज की है कहानी
अब होते नहीं प्यार में ढाई आखर
न मजनूँ परवाना न लैला दीवानी
खो गया बचपन कंक्रीट के जंगलों में
जमीन से अब जुड़ी नहीं है जवानी
हमाम में सब नंगे आँखों पर पट्टी है
ईमान की बस्ती में छाई है वीरानी
होली रोज़ लहू की मौत के पटाखे चलें
त्यौहारों का शहर देख होती है हैरानी
न शराफत न गैरत न इज्जत न मुहब्बत
हैवानियत का मज़ा इंसानियत की है परेशानी
......रजनीश (19.07.2011)
bahut achcha kataksh kiya hai.last ki panktiyan to lajabaab hain.badhaai.
ReplyDeletebadhaai rajnish ji ||
ReplyDeletesundar rachna
बहुत बढ़िया सर।
ReplyDeleteसादर
होली रोज़ लहू की मौत के पटाखे चलें
ReplyDeleteत्यौहारों का शहर देख होती है हैरानी
आज के हालातों को सच्चाई से बयान करती रचना !
the best
ReplyDeleteखो गया बचपन कंक्रीट के जंगलों में
ReplyDeleteजमीन से अब जुड़ी नहीं है जवानी
...बहुत सच कहा है..बहुत सटीक और सुन्दर प्रस्तुति..
behtreen rachna....
ReplyDeleteबहुत सटीक और सुन्दर प्रस्तुति|
ReplyDeleteएक सुन्दर रचना के बधाई स्वीकार करें रजनीश जी...
ReplyDeleteसादर....
आज के सन्दर्भ में अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeletekhubsurat rachana
ReplyDeleteखो गया बचपन कंक्रीट के जंगलों में
ReplyDeleteजमीन से अब जुड़ी नहीं है जवानी
हमाम में सब नंगे आँखों पर पट्टी है
ईमान की बस्ती में छाई है वीरानी
वर्तमान दशा पर कटाक्ष करती शानदार ग़ज़ल...
Vaah! bahut umda lekhni hai aapki . achchha laga
ReplyDeleteVaah! bahut umda lekhni hai aapki . achchha laga
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