Tuesday, July 26, 2011

व्यथा

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मैंने देखी हैं ,एक जोड़ा आँखें ,
उम्र में छोटी, नादां, चुलबुली,
कौतूहल से भरी ,
पुराने चीथड़ों की गुड़िया
 खरोंच लगे कंचों
 पत्थर के कुछ टुकड़ों
 और मिट्टी के खिलौनों में बसी
 कुछ तलाशती आँखें
 भोली सी, प्यारी सी ,  
 दूर खड़ी , मुंह फाड़े , अवाक सब देखतीं हैं
 ... कितनी  हसीन दुनिया                                            
इन आँखों मे बनते कुछ  आँसू चाहत  के      
निकलते नहीं बाहर
और  आँखें ही अपना लेती हैं  उन्हें ..               
और मुड़कर घुस जाती हैं
 फिर उन चीथड़ों पत्थरों और काँच के टुकड़ों में                   
........रजनीश

13 comments:

  1. बहुत खूब व्यथा वयक्त की है आपने.....

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  2. इन आँखों मे बनते कुछ आँसू चाहत के
    निकलते नहीं बाहर
    और आँखें ही अपना लेती हैं उन्हें ..
    और मुड़कर घुस जाती हैं
    फिर उन चीथड़ों पत्थरों और काँच के टुकड़ों में
    .... marmik sthiti

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  3. और आँखें ही अपना लेती हैं उन्हें ..
    और मुड़कर घुस जाती हैं
    फिर उन चीथड़ों पत्थरों और काँच के टुकड़ों में


    वाह सर ।

    सादर

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  4. कल 27/07/2011 को आपकी एक पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  5. बहुत सुन्दर मर्मस्पर्शी रचना...

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  6. व्यथा का बखूबी चित्रण किया है।

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  7. सर्वहारा की कल्पित खुशियों के पैदा होते ही अंत की ....मार्मिक रचना

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  8. कुछ तलाशती आँखें
    भोली सी, प्यारी सी ,
    दूर खड़ी , मुंह फाड़े , अवाक सब देखतीं हैं
    ... कितनी हसीन दुनिया

    बचपन चाहे सुविधाओं में पला हो या अभावों में दुनिया को अवाक् होकर ही देखता है... बहुत सुंदर कविता !

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  9. बेहद मार्मिक अभिव्यक्ति. आभार.
    सादर,
    डोरोथी.

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  10. कुछ तलाशती आँखें ...अच्छी प्रस्तुति

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  11. मन कुछ भारी हो चला है आपकी कविता पढकर...। कविता की सफलता की इससे बडा उदाहरण क्‍या होगा।

    .......
    प्रेम एक दलदल है..
    ’चोंच में आकाश’ समा लेने की जिद।

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  12. aankho me ek dard ek tis ko liye hue likhi gai marmik rachan .
    apni baat kehne me safal rachna .

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टिप्पणी के लिए धन्यवाद ... हार्दिक शुभकामनाएँ ...