हे सूर्य ! तुम्हारी किरणों से,
दूर हो तम अब, करूँ पुकार ।
बहुत हो गया कलुषित जीवन,
अब करो धवल ऊर्जा संचार ।
सुबह, दुपहरी हो या साँझ,
फैला है हरदम अंधकार ।
रात्रि ही छाई रहती है,
नींद में जीता है संसार ।
तामसिक ही दिखते हैं सब,
दिशाहीन प्रवास सभी ।
आंखे बंद किए फिरते हैं...
निशाचरी व्यापार सभी ।
रक्त औ रंग में फर्क न दिखे,
भाई को भाई न देख सके ।
अपने घर में ही डाका डाले,
सहज कोई पथ पर चल न सके ।
हे सूर्य ! तुम्हारी किरणों से,
दूर हो तम अब, करूँ पुकार ।
भेजो मानवता किरणों में,
पशुता से व्याकुल संसार ।
....रजनीश (15.01.11) मकर संक्रांति पर
(ब्लॉग पर ये रचना पहले भी पोस्ट की थी मैंने पर तब नया नया सा था
शायद आपकी नज़र ना पड़ी हो इस पर इसीलिए इच्छा हुई कि दुबारा पोस्ट करूँ )
(ब्लॉग पर ये रचना पहले भी पोस्ट की थी मैंने पर तब नया नया सा था
शायद आपकी नज़र ना पड़ी हो इस पर इसीलिए इच्छा हुई कि दुबारा पोस्ट करूँ )
आमीन
ReplyDeletebahut acchi rachna..acchi kavitayein baar baar prakashit ho ..jyada se jyada logon tak pahunche ..acchi baat hai..pahli baar aapse mila..mere blog pe bhi aapka swagat hai..
ReplyDeleteVery beautiful creation...
ReplyDeleteबहुत सुंदर पंक्तियाँ।
ReplyDeleteपहली बार पढ़ी आपकी यह सुंदर प्रार्थना... ऐसा ही हो !
ReplyDeletebhaut hi khubsurat rachna....
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया सर ।
ReplyDeleteसादर
भावपूर्ण प्रार्थनामय सुन्दर कविता...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteHriday ko jhankrit karti prarthna
ReplyDeleteभेजो मानवता किरणों में.... सही प्रार्थना. स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ.
ReplyDeleteयथार्थ को बताती हुई शानदार अभिब्यक्ति /बधाई आपको /
ReplyDeleteब्लोगर्स मीट वीकली (४)के मंच पर आपका स्वागत है आइये और अपने विचारों से हमें अवगत कराइये/आभार/ इसका लिंक हैhttp://hbfint.blogspot.com/2011/08/4-happy-independence-day-india.htmlधन्यवाद /