Monday, August 8, 2011

खोज

021209 279















कोशिश करता रहता हूँ
खुद को जानने की
चल रहा हूँ एक लंबे सफर में
खुद को समझने की
सब करते होंगे ये
जो जिंदा है ,
मरे हुए नहीं करते
कोशिश का ये रास्ता ,
दरअसल भरा है काँटों से

बेसिर पैर और अनजानी सी जिंदगी
से बेहतर हैं ये कांटे
जिनकी चुभन से उड़ती है नींद और
खुल जाती है आँख
ये कांटे दिखाते हैं रास्ता
देते हैं हौसला
और भरते हैं मुझमें आशा ,
और आगे जाने की
खुद से बेहतर हो जाने की......
....रजनीश

11 comments:

  1. गहन चिन्तन युक्त सुंदर कविता !

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  2. बहुत अच्छी सोच ..खुद से बेहतर हो जाने की ..

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  3. वाह ये खोज ही तो अंतिम लक्ष्य तक लेकर जाती है।

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  4. खुद से बड़ा होना जिसने चाहा वही सच्चा मानव है, खुद को जो चूक जाते हैं वे अंत में पछताते हैं...

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  5. 'ये कांटे दिखाते हैं रास्ता
    देते हैं हौसला .......'
    ..................संघर्षों में जीना ही असली जिंदगी है
    ....................सुन्दर प्रस्तुति

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  6. बहुत खुबसूरत भाव रजनीश जी...
    सादर आभार...

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टिप्पणी के लिए धन्यवाद ... हार्दिक शुभकामनाएँ ...