दुनिया के शोर-गुल में
गुम जाती है अपनी आवाज़
भीड़ में खो जाता है चेहरा
गली-कूचों में अरमान बिखरते जाते हैं
वक्त की जंजीरों में उलझते है पाँव
एक-दूजे को धकेलते बढ़ते चले जाते हैं
और हर एक बस रास्ता पूछता है ...
प्यारा था एक बाग
जिसे ख्वाब समझ दूर हो चले
एक फटी हुई चादर थी
जिसे नियति समझ के ओढ़ लिया
कुछ पल जो मर गए
तो सँजो लिया उन्हें यादों में,
कुछ पलों को मारा
उन्हें सँवारने की ख़्वाहिश में ,
जो पल आने वाले थे
वो बस इंतज़ार में ही निकलते रहे,
भागते हाथों से फिसलते रहे पल
ज़िंदगी एक अंधी दौड़ बन के रह गई है ...
एहसास ही नहीं रहा कि
बिना जिए ही मरे हुए
भाग रहे हैं जिसकी तरफ
उस लम्हे का नाम है मौत ...
और जब पलों के चेहरे पर
दिखने लगती है लिखी ये इबारत
तब भूल जाते हैं बच-खुचा जीना भी
जबकि ये एक अकेला एहसास
अगर हो जाए सफ़र की शुरुआत में,
तो दिल की आवाज़ पहुंचे कानों तक
दिख जाए पावों को रास्ता
सफ़र बने बेहद खूबसूरत
और प्यार से रोशन हो जाए
खुल जाएँ सारी गाठें
हर पल सुनहरा हो जाए
भीड़ से अलग दिखे चेहरा
जो दूजों को भी राह दिखाए ....
.....रजनीश ( 09.10.11)
(...स्टीव जॉब्स को समर्पित )
खूबसूरत प्रस्तुति ||
ReplyDeleteबधाई ||
यादों का सिलसिला भी अजीव है. यादों को खंगालती बढ़िया पोस्ट.
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर यादो का शिलासिला.....
ReplyDeletebhaut hi behtreen rachna....
ReplyDeleteवह मैकपुरुष तो सबको राह दिखा गया।
ReplyDeletebheed se alag chehra jo dujon ko raah dikhaye ---- aameen
ReplyDeleteबहुत ही खूब.
ReplyDeleteकाश ये अहसास सफर की शुरुआत में हो जाते..लाजवाब प्रस्तुति..
ReplyDeletebahut sunder rachna ......
ReplyDeleteमगर यादें अमर रहेगी ....
ReplyDeleteशुभकामनायें आपको !