काली सफ़ेद
दहलीज़ें सुरों की,
साल दर साल
हर रोज़ अंगुलियाँ
जिन्हें पुकारती हैं
और हल्की सी आहट सुन
सुर तुरंत फिसलते बाहर चले आते हैं
कभी नहीं बदलती दहलीज़ सुरों की
और मिलकर एक दूजे से
हमेशा बन जाते हैं संगीत
जो उपजता है दिल में ,
पियानो पर चलती अंगुलियाँ
कभी साथ ले आती हैं तूफान
कभी ठंडी चाँदनी रात की खामोशी,
दिल की धड़कनें अंगुलियों पर
नाचती है सुरों के साथ
फिर पियानो बन जाता है दिल,
एक विशाल सागर
जिसकी लहरों पे सुरों की नाव
में तैरते हैं जज़्बात ...
एक दर्पण दिल का
वही लौटाता है
जो हम उसे देते हैं ...
....रजनीश (04.11।2011)
अदभुत अभिवयक्ति......
ReplyDeleteवाह, हर बार एक नया स्वर निकालता हुआ मन।
ReplyDeletekabhi nahi badalti dahlij suron kee ... waah
ReplyDeleteजो देते हैं वही लौटता है, बेहतरीन ।
ReplyDeletebhaut saargarbhit abhivaykti....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर वाह!
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा शब्दचित्र।
ReplyDeleteसादर
wah ! kya baat hai ...
ReplyDeletebehtreen.
ReplyDeleteपियानो बन जाता है दिल... बहुत गहरे भाव !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर पंक्तियाँ
ReplyDeleteअदभुत सुर छेड़े हैं रजनीश जी. सचमुच दिल की धड़कने उँगलियों पर सुरों के साथ नाचने लगी है. बधाई.
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteoutstanding poem likeddd it:)
ReplyDeletehere is my post :
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