Saturday, November 5, 2011

पियानो - एक चित्र

काली सफ़ेद
दहलीज़ें सुरों की,
साल दर साल
हर रोज़ अंगुलियाँ
जिन्हें पुकारती हैं
और हल्की सी आहट सुन
सुर तुरंत फिसलते बाहर चले आते हैं
कभी नहीं बदलती दहलीज़ सुरों की
और मिलकर एक दूजे से
हमेशा बन जाते हैं संगीत
जो उपजता है दिल में ,
पियानो पर चलती अंगुलियाँ
कभी साथ ले आती हैं तूफान
कभी ठंडी चाँदनी रात की खामोशी,
दिल की धड़कनें अंगुलियों पर
नाचती है सुरों के साथ
फिर पियानो बन जाता है दिल,
एक विशाल सागर
जिसकी लहरों पे सुरों की नाव
में तैरते हैं जज़्बात ...
एक दर्पण दिल का
वही लौटाता है
जो हम उसे देते हैं ...
....रजनीश (04.11।2011)

14 comments:

  1. अदभुत अभिवयक्ति......

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  2. वाह, हर बार एक नया स्वर निकालता हुआ मन।

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  3. जो देते हैं वही लौटता है, बेहतरीन ।

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  4. बहुत ही अच्छा शब्दचित्र।

    सादर

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  5. पियानो बन जाता है दिल... बहुत गहरे भाव !

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  6. बहुत सुन्दर पंक्तियाँ

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  7. अदभुत सुर छेड़े हैं रजनीश जी. सचमुच दिल की धड़कने उँगलियों पर सुरों के साथ नाचने लगी है. बधाई.

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  8. outstanding poem likeddd it:)

    here is my post :

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टिप्पणी के लिए धन्यवाद ... हार्दिक शुभकामनाएँ ...