Sunday, November 20, 2011

दास्ताँ - एक पल की

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कुछ रुका सा कुछ थका सा
कुछ  चुभा सा कुछ फंसा  सा
ये पल लगता है ...

कुछ बुझा सा कुछ ठगा सा
कुछ घिसा सा कुछ पिसा सा
ये पल लगता है  ...

कुछ गिरा सा कुछ फिरा सा
कुछ दबा सा कुछ पिटा सा
ये पल लगता है ...

दिल में है कुछ बात
जो इस पल से हाथ मिला बैठी
हाथ न आएगा अब जरा सा
ये पल लगता है ...

धूप ठहरती नहीं
न ही रुक पाती है रातें
गुजर जाएगा झोंका निरा सा
ये पल लगता है ...
.....रजनीश ( 20.11.2011)

21 comments:

  1. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।

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  2. छाई चर्चामंच पर, प्रस्तुति यह उत्कृष्ट |
    सोमवार को बाचिये, पलटे आकर पृष्ट ||

    charchamanch.blogspot.com

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  3. पल की दास्तान का सुंदर सच्चा बयान!

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  4. पल पल ऐसा ही लगता है ..सुन्दर अभिव्यक्ति

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  5. बहुत खूब, सब बहाये लिये जा रहा है, समय का प्रवाह।

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  6. खूबसूरत अभिव्यक्ति ..

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  7. पल की दास्तान ........

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  8. कल 22/11/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  9. क्या खूब आदरणीय रजनीश भाई...
    बहुत सुन्दर प्रस्तुति....
    सादर...

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  10. जब जब ऐसा लगता है.. भीतर कोई तकता है

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  11. वाह क्या खूब लिखा है !!

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  12. बहुत ही सुन्दर !

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  13. खूबसूरत अभिव्यक्ति ..पलो की दास्तान....

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  14. kuch pal sachmuch aise hote hai......behad sundar..........

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  15. बहुत अच्छी प्रस्तुति।

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