ढूँढते थे तुमको हर कहीं
हर रास्ता हर एक गली
हरदम लगा कि तुम हो
पर तुम मिले कहीं नहीं
गुम गईं सारी मंज़िले
भटकते रहे हर डगर
बदले कई आशियाने
चलता रहा सफ़र
तलाश उसकी हर कहीं
अब अपनी हो चली
ढूँढते हैं खुद को हम
क्या आसमां क्या जमीं
....रजनीश (23.11.2011)
सबकी तलाश अन्ततः एक ही हो जाती है, सरल भी।
ReplyDeleteतलाश जारी रहे ... अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteउसको खोजते खोजते खुद की तलाश, यह तो होना ही था, वह तो भीतर ही है, खुद से ही जाता है खुदा का रास्ता...
ReplyDeleteab khud ki talash ...
ReplyDeletechoti si .....pyari si.....
ReplyDeleteतलाश उसकी हर कहीं
ReplyDeleteअब अपनी हो चली
ज़ारी रहे तो तलाश पूरी भी होगी!
बेहद गहन अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteतलाश उसकी हर कहीं
ReplyDeleteअब अपनी हो चली
ढूंढते हैं खुद को हम
क्या आसमां क्या जमीं
..........सुन्दर पंक्तियाँ.
तलाश उसकी हर कहीं
ReplyDeleteअब अपनी हो चली
ढूँढते हैं खुद को हम
बहुत ही सुन्दर भाव......
क्या आसमां क्या जमीं....
गहरी अभिव्यक्ति ...
ReplyDeleteA journey of finding someone...Beautiful expression!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ..!
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