घूमती है धरा सूरज के चहुं ओर
चंदा लगाता है धरा के फेरे
पेड़ करते हैं जिसे छूने की कोशिश
मुंह किए रहती है सूरजमुखी
उस सूरज की ओर
उड़ते है पंछी बहता है पानी
चलती है हवा होती है बरखा
बदलते हैं मौसम
हर कोने पर होती है
बीतते समय की छाप
जो लौट लौट कर आता है
एक निरंतरता और
एक पुनरावृत्ति
एक नाद जिसकी अनुगूँज हर कहीं
एक स्वर लहरी जो बहती है हर कहीं
सूरज चाँद तारे और धरा
कोई तारा टूटा तो कोई तारा जन्मा
सभी करते नृत्य निरंतर
गाते हैं सभी
ब्रम्हान्डीय संगीत ...
इधर हम धरा के सीने में
अपना शूल चुभाते
पानी की दिशा मोड़ते
पंछियों के घर तोड़ते
फैलाते हैं दुर्गंध और कोलाहल
हम सूरज के साथ नहीं चलते
हमारी दिशा विनाश की दिशा है
हमारा रास्ता विध्वंस का है
जैसे हम इस सुर-संगम का हिस्सा नहीं !
अच्छा लगता है
हमें कृत्रिम वाद्यों की धुन पर
गाना और नाचना
क्यूंकि होते हैं हम उस वक्त
प्रकृति के करीब उसी के अंश रूप में
एक क्षणिक आनंद
और फिर से नीरस दिनचर्या
हमें एहसास नहीं
निरंतर गूँजते
संगीत का
क्यूंकि हमने रख लिए हैं
हाथ कानों पर
और पैरों में बेड़ियाँ डाली हैं
हमारे पाँवों को
नहीं आता थिरकना
प्रकृति के सुर, लय और ताल पर
जो जीवित है गुंजायमान है
हर क्षण और हर कण में
आओ, अपना रास्ता मोड़ लें हम
प्रकृति के साथ प्रकृति की ओर आयें
नैसर्गिक संगीत में हरदम थिरकें
और उत्सव का हिस्सा बन जाएँ ...
....रजनीश (03.12.2011)
हर तत्व की अपनी लय है, अपनी ताल है, यदि हम न देख पायें तो हमारा ही दुर्भाग्य है।
ReplyDeleteप्रकृति के साथ होने और झूमने गाने का संदेश देती सुंदर कविता..!
ReplyDeleteधारा को तो मुडना ही पडेगा।
ReplyDeleteprakriti ka saath ho to yun hi pure shareer mein sangeet bhar jata hai...
ReplyDeleteहमें अपने भविष्य को सुरक्षित करने के लिये प्रकृति से जुडना ही होगा...बहुत प्रेरक प्रस्तुति..
ReplyDeleteसुन्दर रचना .....भावपूर्ण आह्वान
ReplyDeleteसुन्दर सन्देश देती हुई खुबसूरत रचना ...
ReplyDeleteबहुत सुंदर मन के भाव ...
ReplyDeleteप्रभावित करती रचना ...
आपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा दिनांक 05-12-2011 को सोमवारीय चर्चा मंच पर भी होगी। सूचनार्थ
ReplyDeleteप्रकृति के साथ ले बनाये रखना अत्यंत आवश्यक है. इस लय के डगमगाने के दुष्प्रभावों का अनुभव दुखदायी है. सुंदर कविता प्रामाणिक सन्देश देती हुई. बधाई इस सुंदर प्रस्तुति के लिये.
ReplyDeleteआप की रचना बड़ी अच्छी लगी और दिल को छु गई
ReplyDeleteइतनी सुन्दर रचनाये मैं बड़ी देर से आया हु आपका ब्लॉग पे पहली बार आया हु तो अफ़सोस भी होता है की आपका ब्लॉग पहले क्यों नहीं मिला मुझे बस असे ही लिखते रहिये आपको बहुत बहुत शुभकामनाये
आप से निवेदन है की आप मेरे ब्लॉग का भी हिस्सा बने और अपने विचारो से अवगत करवाए
धन्यवाद्
दिनेश पारीक
http://dineshpareek19.blogspot.com/
http://kuchtumkahokuchmekahu.blogspot.com/
प्रकृति के प्रति अपकी चिंता जायज़ है।
ReplyDeletebahut hi sundar abhivykti
ReplyDeleteप्रकृति के साथ. प्रकृति की ओर....
ReplyDeleteसार्थक चिंतन आदरणीय रजनीश भाई...
सादर....
sundar wa dhra prawah shbdyojan...kavita ko char chand lagati hai....badhiya prastuti
ReplyDeletebehad achchi rachna......
ReplyDeletebahut sundar abhivyakti, badhai.
ReplyDeleteपर्यावरणीय नैसर्गिक चेतना से युक्त एक माडर्न कविता
ReplyDeletesahi kaha, prakriti se tartamya jaruri hai
ReplyDeletesundar abhivykti...
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