हुआ था चाँद के साथ
कि चलते चलते
कुछ पल चाँद खो गया था,
पूनम की रात
चाँद के बिना
सेज पर इंतज़ार करती रही
दुल्हन की तरह
कुछ पलों को जलती रही
था मजबूर चाँद
ये वफ़ा थी रस्तों से
एक करार था
सफर के साथियों से
उसे निभाना था
जो डगर थी उसपर
ही जाना था ,
रास्ते ही कुछ
ऐसे होते हैं
कि कभी कभी
अपना वजूद
ही गुम जाता है
खो जाती है मुस्कुराहट
साथ निभाते-निभाते
उखड़ जाते हैं पैर
और दिल भी टूट जाता है,
वक्त की आंधी के बाद
पर चाँद फिर से
निकल अंधेरे से
चाँदनी का घूँघट
हौले से हटाता है
और मीठा सा
अहसास होता है
कि दर्द भरा पल
जो ठहरा सा लगता है
सदा साथ नहीं रहता
गुजर ही जाता है
....रजनीश (11.12.11)
खूबसूरत प्रस्तुति ||
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई ||
achhi rachna...
ReplyDeleteपर चाँद फिर से
ReplyDeleteलिकल अँधेरे से
चांदनी का घूँघट
हौले से हटाता है
क्या बात है. अत्यंत संवेदनशील प्रस्तुति.
बधाई.
खूबसूरत रचना.
ReplyDeleteवक्त कोई भी गुजर हीजाता है बस निशान छोड जाता है।
ReplyDeleteआपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 012-12-2011 को सोमवारीय चर्चा मंच पर भी होगी। सूचनार्थ
ReplyDeletebahut sunder....
ReplyDeleteबिलकुल सही. वक्त कैसा भी हो गुजर जाता है. खूबसूरत रचना. आभार.
ReplyDeleteबहुत ख़ूबसूरत और भावपूर्ण अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteदिल को प्रभावित करने वाली रचना।
ReplyDeleteहम भी तो समय के ग्रहण में खो जाते हैं।
ReplyDeleteवाह !!! विरह और बिछोह को चंद्र ग्रहण के प्रतीकों से सुंदरता से चित्रित किया है.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना ..!
ReplyDeleteआभार !
मेरे ब्लॉग पे आयें आपका स्वागत है !
बहुत सुन्दर प्रस्तुति|
ReplyDeleteचन्द्र ग्रहण को लक्ष्य कर लिखी गयी सुंदर रचना !
ReplyDeleteसशक्त और प्रभावशाली रचना.....
ReplyDeletesunder bimbo ka pryog karti ek sachayi bayan kar gayi ye rachna.
ReplyDeletebeeta samay kabhi laut k nahi aata lekin unki yaade man ko ehsas deti rahti hain.
sundar abhivyakti.....
ReplyDeletevery nice post...
ReplyDeleteखूबसूरत रचना .
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