बचपन के दिन थे
कुछ ऐसे पल छिन थे
ऊपर खुला आसमां था
पूरा शहर अपना मकां था
हर बगिया के बेर
होते अपने थे
खेलते कंचे और
बुनते सपने थे
ना दुनियादारी की झंझट
ना कोई नौकरी का रोना
बस काम था पढ़ना
खेलना-कूदना और सोना
पर तब क्या सब मिल जाता था
क्या जैसा चाहा हो जाता था
क्या दिल तब नहीं दुखता था
क्या कांटा तब कोई नहीं चुभता था
दिल चाहता था उड़ना बाज की तरह
खो जाना वादियों में गूँजती आवाज़ की तरह
हर खिलौना मेरी झोली में नहीं था
मेरा बिछौना भी मखमली नहीं था
बचपन में ही जाना पराया और अपना
कि सच नहीं होता है हर एक सपना
सीखी बचपन में ही चतुराई और लड़ाई
अच्छे और बुरे की समझ भी बचपन में आई
अफसोस तब भी
दर्द तब भी होता था
कुंठा तब भी
प्यार तब भी होता था
कुछ बातें ऐसी थी
लगता बचपन कब बीतेगा
जैसे नियंत्रण में रहना
और पढ़ना कब छूटेगा
बस उम्र ही कम थी
और सब कुछ वही था
थोड़ी सोच कम थी
इसलिए सब लगता सही था
उत्सुकता ज्यादा
और शंका कम थी
सौहार्द्र ज्यादा और
वैमनस्यता कम थी
पर थे सब एहसास
हर भावना मौजूद थी
लगते थे संतोषी
पर हर कामना मौजूद थी
बचपन है आखिर जीवन का हिस्सा
दिन वही और रात वही है
बस कुछ रंग हैं अलग
तस्वीर वही और बात वही है
कोई बचपन महलों में रहता
कोई फुटपाथ पे सो जाता है
किसी को सब मिल जाता है
कोई बचपन खो जाता है
हर बचपन एक जैसा नहीं होता
जैसे नहीं हर एक जवानी
अलग अलग चेहरे हैं सबके
सबकी अलग कहानी
...रजनीश (22.01.2011)
भिन्न भिन्न बचपन .. बहुत सुन्दर रचना .
ReplyDeletesundarta se bhawon ko shabd diye hain..
ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुति...
ReplyDeleteआपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 23-01-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर भी होगी। सूचनार्थ
बहुत अच्छी रचना...
ReplyDeleteसच है, बचपन सबके एक से नहीं हुआ करते..
सादर.
सब अपना तब सब सपना था..
ReplyDeleteविविध रंगों से सजी बचपन ...खूबसूरत रचना
ReplyDeletekaisa bhi ho bachpan lekin jindgi bhar pulkit karta hai hriday ko.
ReplyDeletesunder prastuti.
बहुत बढ़िया!
ReplyDeleteबचपन में भी कुछ अधूरे सपने थे आज भी सपने पुरे करने बाकि हैं...बचपन और वर्तमान की सच्चाइयों को बयान करती सुंदर कविता!
ReplyDeletesach,ye padh kar ahsas hua ki sabhi ka bachpan lubhavna nahin hota.
ReplyDeleteक्या बात है बीज रूप सब कुछ होता है बचपन में .बाकी जीवन रिहर्सल है दोहराव उस बचपन का पल्लवन का फर्क रहता ही है शेष काम पुरुषार्थ है जीवन का काम करने की स्वतंत्रता तो है ही आगे बढ़ने की भी .
ReplyDeleteमित्र आपकी कविता पढ़कर, याद आ गया मुझको बचपन,
ReplyDeleteयौवन तो संघर्षशील है, बृद्धावस्था में है चिन्तन,
बेफ्रिकी आनन्द भरा हो, बचपन ही है असली जीवन।
कृपया इसे भी पढ़े
क्या यही गणतंत्र है
बहुत सच कहा है कि सब का बचपन और जीवन एक सा नहीं होता..बचपन का बहुत सुन्दर और मर्मस्पर्शी चित्रण...
ReplyDeletebahut vividhata liye shabd-chitra
ReplyDeletebahut hi sundar rachna....bchpan ki kaee yaaden taza ho aaee. pahli baar aap ke blog par aana hua,acha blog hai aap ka...
ReplyDeletebahut sundar ...!!
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