एक नज़्म लिखी थी
उस पन्ने पर
जो दिल में
कोरा पड़ा था
पर कुछ शब्द
नहीं थे पास मेरे
कुछ लाइनें अहसासों में
अटक गईं थीं
लिखते लिखते ही
पन्ना गुम
गया था रद्दी में
कलम भी खो गई थी
हिसाब-किताब में
पलाश फिर दिखा
खिड़की से
रद्दी से फिर
हाथ आ गया
वही पन्ना
उस नज़्म के दिन
लौट आए हैं ...
रजनीश (13.02.2012)
प्रकृति भी अपना सफेद रंग तज रही है...वाह..
ReplyDeleteउस नज़्म के दिन
ReplyDeleteलौट आए हैं ... बहुत खूब्।
बहुत खूब सर!
ReplyDeleteसादर
बहुत सुन्दर....
ReplyDeleteदोनों हाथों से समेट लिया जाये इन दिनों को..
बहुत सुंदर रचना...
ReplyDeleteबहुत ही गहरे और सुन्दर भावो को रचना में सजाया है आपने.....
ReplyDeleteadhoori nazm ka bhi alag hi mazaa hai sirji :)
ReplyDeletepalchhin-aditya.blogspot.in
सुंदर भाव ....
ReplyDeleteKhoobsoorat abhivyakti hai!
ReplyDeleteखूबसूरत नज़्म
ReplyDeletewah....bahut sunder.
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