सुबह की सुहानी ठंड
बिछाती है ओस की चादर
घास पर उभर आती है
एक इबारत
हर तरफ
दिखता है बस
तुम्हारा ही नाम
राहों से गुजरते
वक़्त की धूल
चढ़ जाती है काँच पर
पर हर बार
गुम होने से पहले
इन उँगलियों से
लिखवा लिया करती है
तुम्हारा ही नाम
एक पंछी अक्सर
दाना चुगते-सुस्ताते
मुंडेर पर छत की
गुनगुनाता और बतियाता है
और वहीं पास बैठे
पन्नों पे ज़िंदगी उतारते-उतारते
उसकी चहचहाहट में
मुझे मिलता है बस
तुम्हारा ही नाम
सूरज को विदा कर
जब होता हूँ
मुखातिब मैं खुद से
तो बातें तुम्हारी ही होती हैं
और फिर थपकी देकर
लोरी गाकर जब रात सुलाती है
तो खो जाता हूँ सपनों में
सुनते सुनते बस
तुम्हारा ही नाम
......रजनीश (15.02.2012)
रचना मन को भा गई।
ReplyDeletebahut pyar hai rachna men....
ReplyDeleteबड़ा ही प्यारा है तुम्हारा नाम..
ReplyDeletewah..bahut sunder..
ReplyDeleteसुन्दर...
ReplyDeleteमनभावन रचना..
बहुत ही बढ़िया सर!
ReplyDeleteसादर
बहुत सुन्दर रचना...
ReplyDeleteसादर बधाई...
प्यार की खुबसूरत अभिवयक्ति........
ReplyDeleteबेहद प्रभावशाली रचना.
ReplyDeletebahut komal abhivyakti
ReplyDeleteसुंदर भावपूर्ण रचना..गंभीर और संवेदनशील.
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