Tuesday, April 3, 2012

आधे अधूरे

कुछ लाइनें अधलिखी
कुछ बातें अनकही
कुछ रातें अकेली
रह जाती हैं

कुछ झरोखे अधखुले
कुछ लम्हे अधसिले
कुछ किताबें अनछुई
रह जाती हैं

कुछ कदम भटके
कुछ जज़्बात अटके
कुछ कलियाँ अधखिली
रह जाती हैं

कुछ ख़याल बिसरे
कुछ सपने बिखरे
कुछ मुलाकातें अधूरी
रह जाती हैं

रजनीश (03.04.2012)

10 comments:

  1. सही लिखा हर चीज अधूरी ही रहती है..इसी अधूरेपन को तोड़ने का नाम तो जिन्दगी है....

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  2. बेहद तरतीब और तरक़ीब से अपनी बात रखी है।

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  3. चन्द्रमा भी एक माह में एक बार ही पूर्ण रहता है।

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  4. यही अधूरापन जिंदगी में मिठास के बरकरार रहने का रहस्य है...

    बहुत सुन्दर बात कही है आपने ...

    कभी हमारे यहाँ भी तशरीफ लाइए ...

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  5. आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 05-04-2012 को यहाँ भी है

    .... आज की नयी पुरानी हलचल में ......सुनो मत छेड़ो सुख तान .

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  6. चाहे कितना भी पूरा करने का प्रयास करें कुछ न कुछ अधूरा रह ही जाता है ... सुंदर अभिव्यक्ति

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  7. बिसरे-बिखरे , आधे-अधूरे फिर भी लगता है ..हम हैं पूरे ..अतिसुन्दर..

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  8. अधूरापन भी एक हद के बाद भाने लगता है

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  9. कभी-कभी अधलिखा भी पूरा सा लगता है..... बहुत ही अच्छी अभिवयक्ति......

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टिप्पणी के लिए धन्यवाद ... हार्दिक शुभकामनाएँ ...