Sunday, April 8, 2012

कुछ पलों के लिए

अनायास ही कुछ बूंदें आसमान से आकर
जमीन पर गिर पड़ीं
नीम दर्द से तपती जमीं पर
थोड़ी ठंडक छोड़ती
भाप बनती बूंदें
कुछ पलों के लिए

धूल का गुबार
थम सा गया था
और भाप होती बूंदों
के बचे हिस्सों ने उढ़ा दी थी
एक चादर जमीं पर
कुछ पलों के लिए

ठंडी हवा के झोंके में
जमीं का दर्द घुलकर
गुम गया था
मैं चल रहा था
हौले -हौले सम्हल सम्हल
ताकि जमीं रह सके इस सुकून में
कुछ पलों के लिए

फिर भी  उभर आए
मेरे पैरों के निशान
और धीरे धीरे
फिर धूल आने  लगी ऊपर
दब गई थी धूल
बस कुछ पलों के लिए

जैसे कोई बूढ़ा दर्द
थम गया हो
बरसों से जागती
आँखों में आकर बस गई हो नींद
एक उजाड़ से सूखे बगीचे में
खिल गया हो एक फूल
कुछ पलों के लिए

कुछ पलों का सुकून
कुछ पलों की बूँदाबाँदी
जलन खत्म नहीं करती
पर एहसास दिला जाती है
वक्त एक सा नहीं रहता
वक्त बदलता है
बुझ जाती है प्यास
बरसते हैं बादल  
साल दर साल
पर वक़्त नहीं आता
अपने वक़्त से पहले
................रजनीश (08.04.2012)

14 comments:

  1. वक्त नहीं आता अपने वक्त से पहले ...
    इसी प्रकार लेते हैं प्रभु धैर्य की परीक्षा ...
    पर वक्त आता ज़रूर है ....!!
    सुंदर रचना ...
    शुभकामनायें ...!!

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  2. बहुत सुन्दर वाह!
    आपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि कल दिनांक 09-04-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ

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  3. बहुत सुन्दर रचना है बधाई।

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  4. vaqt nahi tharta,,sahi baat....sunder rachna

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  5. हर घड़ी एक इम्तिहान है. इस इम्तिहान में कामयाबी हासिल करते हुए ही आगे बढ़ना जिंदगी है...


    सुंदर प्रस्तुति. बधाई.

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  6. क्या बात है .......खुबसूरत

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  7. सुंदर रचना ...
    मनोभावों को बेहद खूबसूरती से पिरोया है आपने.......
    हार्दिक बधाई।

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  8. "पर वक्त नहीं आता... वक्त से पहले."

    वाह ...क्या बात ..

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  9. जहाँ जहाँ से वह बूँद निकलती है, दर्द की रेख बन जाती है।

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  10. बदलते वक़्त के बदलते एहसासों ने शायद पिछले हफ्ते की बूँदाबाँदी ने जन्म दिया है, सोंधी महक कुछ ऐसा ही कह रही है, वाह !!!!!!!!!!!!

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  11. मन और मौसम की कथा व्यथा कहती सुंदर रचना...आभार!

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  12. बहुत सुन्दर रचना बधाई...

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  13. वाह! बहुत सुन्दर...

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टिप्पणी के लिए धन्यवाद ... हार्दिक शुभकामनाएँ ...