Sunday, June 24, 2012

जंग ज़िंदगी की

एक ज़िंदगी
को बचाने किए
लाखों जतन
लड़ गए समय से
झोंक दिया अपना तन-मन
दिन -रात एक किया
और दिखाया जज़्बा
अपनी कौम को बचाने का
मुसीबतजदा  के काम आने का ...

पर जिसने खोदा गड्ढा 
वो भी इंसान था
खुद्गर्जी और लालच में
जो बन गया शैतान था  

गड्ढे की हैवानियत में
फंसी इंसानियत
घुटती रही
लंबी चली जंग में
एक ज़िंदगी पुकारती रही
हैवानियत थी बुलंद
इंसानियत हारती रही

जिंदगी फिर हार गई
सब रिश्ते तोड़ गई
शहरवालों के लिए
पर एक सबक छोड़ गई ...
.....रजनीश (24.06.2012)

13 comments:

  1. क्या बात है!!
    आपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि कल दिनांक 25-06-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-921 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ

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  2. बहुत खूब

    बेहद मार्मिक रचना

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    दाग धुले आग मे

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  3. न जाने कितने गढ्ढे खुदे हुये हैं, न जाने कितने और जीवन स्वाहा किये जायेंगे।

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  4. उत्कृष्ट |
    बहुत बहुत बधाई |

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  5. इतना सब होने पर भी न जनता जागरूक होगी न शासक .... माही जैसे बच्चे ऐसे ही गड्ढों में गिरते रहेंगे .....और ज़िंदगी की जंग लड़ते रहेंगे

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  6. न जाने कब आँख खुलेगी और जनता जागरूक होगी क्यूंकी सरकार तो जागरूक होने से रही आम आदमी को खुद ही अपने हक के लिए लड़ना होगा वरना ना जाने कितनी बार इंसानियत यूं ही दम तोड़ेगी।

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  7. सुन्दर अभिव्यक्ति....
    सादर.

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  8. Who can ever experience the agony which these tiny tots must have felt?But nobody cares.

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  9. बहुत मार्मिक सामयिक रचना लिखी है आपने सचमुच जिंदगी हार गई अब तो सबक मिलना ही चाहिए लोगों को क्या अभी भी चेतेंगे या नहीं पता नहीं

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  10. सम सामयिक मर्म के जरिये सार्थक संदेश.

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  11. मार्मिक रचना

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टिप्पणी के लिए धन्यवाद ... हार्दिक शुभकामनाएँ ...