Tuesday, June 26, 2012

एक दौड़ का आँखों देखा हाल

हिस्सा हूँ एक दौड़ का
एक ऐसी दौड़
जिसमें शामिल हैं सभी
ऐसी दौड़ का
जिसकी ना शुरुआत का पता है
ना ही इसकी मंज़िल का
मैंने भी कहीं से शुरू किया
और पहुंचूंगा किसी जगह
पर दौड़ का रास्ता तय नहीं
सब अपनी अपनी सलीब लिए 
अपने अपने रास्तों में
बदहवासी में
बस दौड़े चले जाते हैं
 टकरा  जाते है 
भिड़ भी  जाते हैं
जहां रास्ते कटते हैं 
या फिर वहाँ
जहां रास्ते मिल जाते हैं 
और जगह नहीं होती
साथ दौड़ने की 

कई लोगों को देखा है
हाँफते हुए खुद को समेटते हुए
और तेजी से दौड़ते
गिरते पड़ते खुद को संभालते
औरों को रौदते
दौड़ लगाते
पर सभी दौडते दौड़ते ही खप गए
दौड़ तो पूरी नहीं हुई
अब तक

किसी ने कहा 
तुम जिस रास्ते पर दौड़ रहे हो
तुम्हें इसी में ही दौड़ना था
पर कब तय हुआ ये
मुझे तो  लगा जैसे
किसी ने समय दिया है मुझे
कि इस अंतराल में
जिधर दौड़ना चाहते हो
जिस ओर भी दौड़ लो 
बस दौड़ सकते हो तुम
हालांकि कितना समय
ये मैं नहीं जानता

एक अजीब सी बेचैनी
एक रहस्य एक रोमांच
एक ऐसी दौड़
जो हर तरफ हर समय
हर कहीं चलती है 
एक अंधी दौड़

रह भी नहीं सकता
एक जगह लगातार
दौड़ते हुए मैंने देखा
कि मेरा मुक़ाबला भी मुझसे ही है
मैं खुद दौड़ता हूँ
अपने आप को दौड़ाना
मेरी नियति है ....
......रजनीश (26.06.12)




7 comments:

  1. जिंदगी एक दौड़ ही है कभी जय कभी पराजय परन्तु दौड़ यथावत चालू है.

    सुंदर प्रेरक कविता.

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  2. बस सब दौड़ रहे हैं ..... अच्छी प्रस्तुति

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  3. बहुत सटीक चित्रण आज के जीवन की आपाधापी का ....

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  4. रुक कर सोचने में पीछे छूट जाने का भय है..दौड़ते हुये ही सोचना होगा..

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  5. बहुत गहन चिंतन...

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  6. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति...बधाई!!

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टिप्पणी के लिए धन्यवाद ... हार्दिक शुभकामनाएँ ...