Friday, June 29, 2012

बारिश में धूप

बारिश से धुले
चमकते पत्तों पर
उतरी धूप
फिसल कर
छा जाती है
नीचे उग आई
हरी भरी चादर पर

बादल रुक जाते हैं
और हल्की ठंडी
हवा के झोंकों में
कुछ दिनों से
 प्यास बुझाती धरती
करती है थोड़ा आराम

ये धूप किसी के
कहने पर आ गई थी
वो सम्हालता अपना 
उजड़ा आशियाना
कोई तानता
अपनी छत दुबारा

जो धरती पी न सकी
वो धाराओं में बह गया
और ले गया साथ
कुछ का सब कुछ
ये सब करते हैं
धूप का शुक्रिया अदा

और कोई धूप को 
देख करता था रुख 
बादलों की ओर
बार-बार और कहता था 
कि तुम रुक क्यूँ गए
कि अभी तक
नहीं पहुंचा पानी
पोरों में, और फूटे नहीं हैं
अंकुर अभी बीजों में
फिर धूप से कहता था
तुम क्यूँ आ गईं

वहीं कोई बेखबर
इस धूप से बस यूं ही
चला जाता है और
पानी से भी
नहीं पड़ता उसे कोई फर्क 
इन्हें कर लिया है उसने बस में

वही धूप वही बादल
वही पत्ते वही पानी , पर
एक सुबह का एहसास
हर किसी के लिए
अलग-अलग होता है
....रजनीश (29.06.2012)

6 comments:

  1. bahut sundar srijan, badhai.
    प्रिय महोदय

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    हमारा पता -

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    19/ 256 इंदिरा नगर , लखनऊ -226016



    ई-मेल : journalistsindia@gmail.com

    मोबाइल 09455038215

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  2. खूबसूरत |
    आभार भाई रजनीश ||

    उलाहना देता रहा, सदियों से इंसान |
    मिले यहाँ प्रत्यक्ष जो, कम उसका सम्मान |
    कम उसका सम्मान, कहीं की बाढ़ हकीक़त |
    सूखा रहा निचोड़, कहीं पर खून मुसीबत |
    रविकर धोबीघाट, धूप की सदा वन्दना |
    लेकिन कृषक समाज, कभी दे रहा उलहना |

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  3. वही धूप वही बादल,
    वही पत्ते वही पानी...

    बारिश के बिम्ब में जीवन-दृश्य भी समाहित हो गए हैं।

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  4. सुन्दर अभिव्यक्ति

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  5. सच कुछ स्पष्ट सा दिखने लगता है।

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टिप्पणी के लिए धन्यवाद ... हार्दिक शुभकामनाएँ ...