मैं जानता हूँ
मेरी चंद ख़्वाहिशों के रास्ते
नक़्शे पर दिखाई नहीं देते,
मैं जानता हूँ
मेरे कुछ सपनों के घरों का पता
किसी डाकिये को नहीं,
मैं जानता हूँ
मेरे चंद अरमानों का बोझ
नहीं उठा सकते मेरे ही कंधे,
मैं जानता हूँ
मेरी तन्हाई मुझे ही
नहीं रहने देती अकेले ,
मैं जानता हूँ
मेरे कुछ शब्दों को
आवाज़ मिली नहीं अब तक,
मैं जानता हूँ
राह पर चलते-चलते
बहुत कुछ पीछे छूटता जाता है,
मैं जानता हूँ
कुछ लम्हे निकल जाते हैं
बगल से बिना मिले ही,
मैं जानता हूँ
बरस तो जाएगी पर
बारिश नहीं भिगोएगी कुछ खेतों को
मैं जानता हूँ ये सब कुछ,
मैं जानता हूँ सब कुछ...
फिर भी लगाए हैं कुछ बीज मैंने
फिर भी करता हूँ कोशिश मिलने की हर लम्हे से,
मैं जानता हूँ सब कुछ...
फिर भी लगा हूँ बटोरने रास्ते से हर टुकड़ा
फिर भी सँजोये रहता हूँ अनकहे शब्दों को जेहन में
मैं जानता हूँ सब कुछ...
फिर भी कहता रहता हूँ तन्हाई से दूर जाने को
फिर भी देता हूँ डाकिये को अरमानों के नाम कुछ पातियाँ
मैं जानता हूँ सब कुछ...
पर अक्सर नक्शों में ढूँढता हूँ
सपनों के वो रास्ते ...
मैं जानता हूँ
कि आस है मुझे कुछ करिश्मों की ….
.....रजनीश (26.07.12)
सुंदर प्रस्तुति,बेहतरीन अभिव्यक्ति,,,,रजनीश जी बधाई
ReplyDeleteRECENT POST,,,इन्तजार,,,
आस और पूरे होंगे सब अरमान ये विश्वास...यही तो जीने का मकसद हैं...
ReplyDeleteसुन्दर रचना रजनीश जी.
अनु
Behatareen lines :)
ReplyDeleteवाह ! बहुत सुंदर, करिश्मे हर पल घटते हैं उन्हें देखने की नजर चाहिए..
ReplyDeleteमैं जानता हूँ
ReplyDeleteमेरे कुछ शब्दों को
आवाज़ मिली नहीं अब तक,
मैं जानता हूँ
राह पर चलते-चलते
बहुत कुछ पीछे छूटता जाता है
बहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचना ....
वाह !
ReplyDeleteवाकई बहुत कुछ
जानते हैं आप
अंत तक पहुँचते पहुँचते
जग रही है आस
करिश्मा देखिये
होने ही वाला है
सपना सपना अब
नहीं रहने वाला है
डाकिये को भी
पता हो गयी
है ये बात
नहीं भी आयेगी
पाती तब भी
एक तो पक्का वो
खुद लिख कर
लाने वाला है !!
मैं जानता हूँ
ReplyDeleteमेरे कुछ शब्दों को
आवाज़ मिली नहीं अब तक,
मैं जानता हूँ
राह पर चलते-चलते
बहुत कुछ पीछे छूटता जाता है
भावमय करते शब्द
अब तो बस करिश्मों की प्रतीक्षा है...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ...
ReplyDeleteसादर.
मैं जानता हूँ
ReplyDeleteमेरे कुछ शब्दों को
आवाज़ मिली नहीं अब तक,
मैं जानता हूँ
राह पर चलते-चलते
बहुत कुछ पीछे छूटता जाता है..dil ko chu gayi panktiya.....
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteसपनों के घर का पता ही तो हम सब ढूढ़ रहे हैं.
ReplyDeleteबहुत सुंदर.
सबकुछ जानते हुए भी अपनी तलाश होती ही है ...
ReplyDeletehum saab sab kuch jante hain bas ye dil hi nahi manta....
ReplyDeleteज़िंदगी में कई बार सब कुछ जानते हुए भी इंतज़ार होता है कुछ करिश्मों का...शायद यही देते हैं प्रेरणा जीने की...बहुत सुन्दर प्रस्तुति...
ReplyDeleteसार्थक प्रस्तुति
ReplyDeleteयह तजवीज भी अच्छी है कि करिश्मों से ख्वाहिशों को मुकाम मिल जाये.
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति.
Bahut badhiya kavita hai.
ReplyDeleteइस सुन्दरतम रचना के लिए बधाई स्वीकारें.
ReplyDeleteकृपया मेरी नवीनतम पोस्ट पर पधारें , अपनी प्रतिक्रिया दें , आभारी होऊंगा .
इस सुन्दरतम रचना के लिए बधाई स्वीकारें.
ReplyDeleteकृपया मेरी नवीनतम पोस्ट पर पधारें , अपनी प्रतिक्रिया दें , आभारी होऊंगा .
सुंदर प्रस्तुति,बेहतरीन अभिव्यक्ति
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